ई-पुस्तकें >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
लंगड़ा चोर
सप्ताह बीत जाने के बाद भी असली चोर पुलिस की पकड़ में नहीं आ रहा था। मंत्री जी के घर चोरी का मामला है इसलिए पुलिस और प्रशासन के नाक में दम आ रहा था। सुबह सुबह थानेदार ने हवलदार रामसिंह को बुलाकर समझाया- असली चोर मिले न मिले किसी को भी पकड़ लाओ, एक बार जान तो छूटे।
रामसिंह ने सुन रखा था ऐसे इलजाम लगाने के लिए विकलांग उपयुक्त रहते हैं क्योंकि उनकी पैरवी करने वाले नहीं होते। तभी हवलदार की नजर एक काने व्यक्ति पर पड़ी। उसकी बाछें खिल गईं। एक सिपाही की सहायता से वह उसे उठवाकर थाने ले आया।
थानेदार ने उससे अनेक सवाल किए। धमकाकर, डराकर, समझाकर उसकी एफआइआर. बना दी गई। अगले दिन अखबारों में समाचार छपा तो पुलिस की नाक बची।
अदालत में जज साहब ने उससे अनेक सवाल किए परन्तु उसने मुंह नहीं खोला। उसे सरकारी वकील लेने को कहा, परन्तु उसने गर्दन हिलाकर इंकार कर दिया। सारे सबूत उसे चोर घोषित कर रहे थे।
जज साहब ने कहा- रामदिया यदि तुम कुछ भी नहीं बताओगे तो खिड़की के पास बने तुम्हारे पाँवों के निशान के आधार पर तुम्हें ......।
रामदिया अचानक चीख उठा... ठहरिए जज साहब।
एक क्षण में उसने अपने नकली पांव को निकालकर अपना अधूरा पांव दिखा दिया।
कोर्ट में उपस्थिति सभी आँखें फटी की फटी रह गयीं।
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