ई-पुस्तकें >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
हिम्मत
रेलवे स्टेशन से निकलते ही मूछोंवाले व्यक्ति ने उसे पकड़ लिया - ऐ लंगडी बुढिया, के सै तेरी इस पोटली में.. चल नीचे उतार।
'बेटा थोड़ा सा खाण का सामान सै... और कुछ ना सै', बुढिया ने दोनों हाथ जोड़ दिए।
तू यूं नहीं मानेगी.., तेरी पर्ची कटवाणी पड़ेगी..., नहीं तो निकाल दे मेरा हिस्सा, चुपचाप.....।
'हिस्सा.... क्यां का हिस्सा रे...'
'जो कुछ इसमें सें- डंडे से पोटली टटोलते हुए उसने कहा।'
लंगड़ी बुढिया ने पोटली उतारकर खोल दी और बोली- मनै के बेरा था, तेरा भी पेट पाटरया सै.... ले खा ले....।
'के सै यो कबाड़ा.....'?
'भीख में मांगी पांच दिना की रोटियां नै बेचण जा रही थी। ले ले तू भी अपना हिस्सा। मनैं ना बेरा था सरकार नै भी जगह जगह अपने मंगते छोड़ राखे सै'।
मूछों वाला अब इधर से नजर चुराकर दूसरे यात्रियों को देखने लगा।
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