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हौसला
हौसला
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9698
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आईएसबीएन :9781613016015 |
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9 पाठकों को प्रिय
198 पाठक हैं
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
खून का रंग
दोनों के अपंग होने के कारण आपस में दोस्ती हो गयी। धर्म जाति की कोई बात तो नहीं चली परन्तु एक दूसरे के नाम और व्यवहार से समझते थे कि एक मुसलमान है तो दूसरा हिन्दू। एक का नाम भैरव तो दूसरे का अब्दुल।
अब्दुल ने एक दिन पूछा - भैरव तुम भिखारी कैसे बने?
गहरी सांस लेकर भैरव ने कहा - शादी के समय मां मुझे दहेज में लायी थी। जब मैं पांच वर्ष का हुआ तो मेरी मां मर गयी। बाप नयी घरवाली ले आया। दोनों सुबह शाम मुझसे काम करवाते और बाप दिन में मुझे भीख मांगने के लिए चौराहे पर खड़ा कर देता क्योंकि उसको शराब के लिए पैसे चाहिए। जैसे ही मुझे कुछ समझ आयी तो मैं शहर भाग आया... अब तू बता यहां कैसे आया?
'मैं... अब्दुल कुछ समय सोचने के बाद बोला - मेरी मम्मी बचपन में मर गयी थी। नयी मम्मी आयी तो उसने तीन लड़के पैदा किए। एक दिन नई मम्मी और तीन भाइयों ने मिलकर मेरा हाथ तोड़ दिया और घर से निकाल दिया। ट्रेन से भागकर मैं यहां आ गया.... फिर यहां मुझे तू मिल गया, मेरा मोटा भाई.....।'
दोनों ने एक दूसरे को बाहों में भर लिया। उनकी आँखों से दर्द पिघलकर रिसने लगा।
० ० ०
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