ई-पुस्तकें >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
याचक
प्रत्येक वर्ष सौरभ के जन्म दिन पर उसके पापा उसे जन सेवा संस्थान में ले जाते। बचपन में सौरभ इन बातों को नहीं समझता था परन्तु अब वह सब कुछ जानने की कोशिश करने लगा- पापा मुझे जन्मदिन पर यहां क्यों लाते हो?
'बेटे यहां सब अपंग लोग रहते हैं। उनको भोजन खिलाने से तुम्हें आशीर्वाद मिलता है-पापा ने समझाया।'
उसने तुरंत दूसरा प्रश्न पूछा- पापा ये बुत किसका है?
'बेटे यह उस अपंग भिखारी का है जिसके पैसे से यह आश्रम बना।
'वो अपंग भिखारी कहां है...?'
'बेटे सात मास पहले भीख मांगते हुए सड़क दुर्घटना में उनकी मृत्यु हो गयी'
'पापा फिर तो वह भिखारी नहीं दानदाता था'- अचानक सौरभ के छोटे मुंह से बड़ी बात सुनकर पापा आश्चर्यचकित रह गए।
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