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हौसला
हौसला
प्रकाशक :
भारतीय साहित्य संग्रह |
प्रकाशित वर्ष : 2016 |
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ :
ईपुस्तक
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पुस्तक क्रमांक : 9698
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आईएसबीएन :9781613016015 |
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9 पाठकों को प्रिय
198 पाठक हैं
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
सूरदास
सभी साथी मिलकर आपस में चोर सिपाही खेल रहे थे। राहुल की बारी आयी तो उसकी दोनों आँखें बांध दी गयीं। सभी बच्चे तालियाँ बजाते हुए इधर-उधर भागने लगे। तालियों की आवाज सुनकर वह पकड़ने के लिए उनके पीछे भागता।
किसी को न पकड़ पाने के कारण वह हताश हो गया। इस बार वह आवाज की ओर तेजी के साथ लपका। हाथ तो कोई नहीं आया परन्तु वह चबूतरे से नीचे जा गिरा। सारी खिलखिलाहट पीड़ा में बदल गयी। राहुल को तुरन्त ध्यान आ गया कि एक दिन उसने सूरदास की लकड़ी छिपाकर उसे तंग किया था, यह उसी का परिणाम है।
राहुल को ऐसा गुमसुम देखकर माँ की चिंता बढ़ गई- बेटे, राहुल तू कुछ बोलता क्यों नहीं, ये तो बता आखिर तुझे हुआ क्या है?
'मम्मी मैंने तो थोड़ी देर के लिए आँखें बांधी थी तो ये हाल हो गया और वह हमारा पड़ोसी सूरदास... उसका जीवन कैसे चलता होगा?'
० ० ०
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