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हौसला

मधुकांत

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9698
आईएसबीएन :9781613016015

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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं

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'मानव, कुछ नेता ख्याली के विषय में बताओ। मैंने सुना है उसका मानसिक संतुलन बिगड गया। सुरेन ने फोन पर नया प्रसंग छेड़ दिया।'

'अब वह ठीक है.......।

'क्या कहा ठीक है। कमाल है .... परन्तु ये चमत्कार हुआ कैसे....?'

सत्ता चली जाने के बाद ख्यालीराम के पास कोई हुक्का-पानी पीने नहीं आता था। कुछ लोग सत्ताधारी नेता के पास जाने लगे तथा कुछ अपने कामों में लग गए।

'परन्तु तुमने तो बताया था कि वो मानसिक बीमार हो गए। अकेले बड़बड़ाते रहते हैं........।'

'ये बात तो ठीक है। असल में उनका बेटे डॉ॰ होशियारे ने अपने पिता की बैठक में उनके दोस्तों के पुतले बनवाकर मुढ़े पर रखवा दिये। ख्यालीराम उनके पास बैठे घण्टों बातचीत करते हुए हुक्का गुड़गुड़ाते रहते।' डॉ॰ होशियारे ने धीरे-धीरे राम सिंह, बख्तावर सिंह, नाहर सिंह, चरण सिंह, कमल सिंह, सभी साथियों के पुतले बनवा दिए।

ख्यालीराम अब अपनी पूर्व दिन चर्या के अनुसार साथियों के साथ गपशप करते हैं, सारे पुतले उनकी बातें सुनते हैं। कोई विरोध नहीं करता। चुपचाप सुनते-समझते रहते हैं इसलिए नेता ख्यालीराम आजकल पहले से भी अधिक खुश नजर आते हैं।

कमाल का इलाज किया डॉ॰ होशियारे ने। ठीक है भाई राम-राम - जिज्ञासा शान्त कर सुरेन ने फोन रख दिया।

 

० ० ०

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