ई-पुस्तकें >> हौसला हौसलामधुकांत
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नि:शक्त जीवन पर 51 लघुकथाएं
सेवा
विकलांग पीठ के संचालक भाई सेवादास सूर्यदेवता को जल अर्पित करने के लिए आश्रम की छत पर आ गए। पिछले पांच वर्षों में आश्रम का कई गुणा विस्तार हो गया था। चारों ओर निर्मित भवन, बाग बगीचे, गऊशाला आदि को देखकर उन्हें बड़ा संतोष हुआ।
गुरुजी की आदम-कद प्रतिमा को देखकर सेवादास स्मृति में खो गया। 10 वर्ष पूर्व वह पोलियो का इलाज करवाने यहाँ आया था। दो वर्ष में वह अपने पांव पर खड़ा हो गया। घर वाले लेने आए तो उसने आश्रम में रहकर सेवा करने का निश्चय किया। सबकी स्वीकृति के उपरान्त सेवादास आश्रम में काम करने लगा। उसकी लगन और निष्ठा को देखकर गुरुजी ने उसे अपना उतराधिकारी बना लिया। कुछ दिनों बाद गुरुजी स्वर्ग सिधार गए। सेवादास दिन-रात विकलांग लोगों की सेवा में लग गए। वहां के लोगों ने तन-मन-धन से आश्रम में सहयोग दिया।
ॐ सूर्याय नमः-सूर्य देवता को जल समर्पित करते हुए सेवादास को असीम संतोष व आनन्द अनुभव हुआ।
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