ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 44 ।
कहों हनुमानसों सुजान रामरायसों,
कृपानिधान संकरसों सावधान सुनिये ।
हरष विषाद राग रोष गुन दोषमई,
बिरची बिरंचि सब देखियत दुनिये ।।
माया जीव कालके करमके सुभायके,
करैया राम बेद कहैं साँची मन गुनिये ।
तुम्हतें कहा न ह्मेय हाहा सो बुझैये मोहि,
हौं हूँ रहों मौन ही बयो सो जानि लुनिये ।।
भावार्थ - मैं हनुमानजी से, सुजान राजा राम से और कृपानिधान शंकरजी से कहता हूँ उसे सावधान होकर सुनिये। देखा जाता है कि विधाता ने सारी दुनिया को हर्ष, विषाद, राग, रोष, गुण और दोषमय बनाया है। वेद कहते हैं कि माया, जीव, काल, कर्म और स्वभाव के करनेवाले रामचन्द्रजी हैं। इस बात को मैंने चित्त में सत्य माना है। मैं विनती करता हूँ मुझे यह समझा दीजिये कि आपसे क्या नहीं हो सकता। फिर मैं भी यह जानकर चुप रहूँगा कि जो बोया है वही काटता हूँ।।
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