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ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 37 ।

कालकी करालता करम कठिनाई कीधौं,
पापके प्रभावकी सुभाय बाय बावरे ।
बेदन कुभाँति सो सही न जाति राति दिन,
सोई बाँह गही जो गही समीरडावरे ।।

लायो तरु तुलसी तिहारो सो निहारि बारि,
सींचिये मलीन भो तयो है तिहूँ तावरे ।
भूतनिकी आपनी परायेकी कृपानिधान,
जानियत सबहीकी रीति राम रावरे ।।

भावार्थ - न जाने कालकी भयानकता है कि कर्मों की कठिनता है, पापका प्रभाव है अथवा स्वाभाविक बातकी उन्मत्तता है। रात-दिन बुरी तरह की पीड़ा हो रही है, जो सही नहीं जाती और उसी बाँह को पकड़े हुए है जिसको पवनकुमार ने पकड़ा था। तुलसीरूपी वृक्ष आपका ही लगाया हुआ है। यह तीनों तापों की ज्वाला से झुलसकर मुरझा गया है इसकी ओर निहारकर कृपारूपी जलसे सींचिये। हे दयानिधान रामचन्द्रजी! आप भूतोंकी, अपनी और विराने की सबकी रीति जानते हैं।। 37 ।।

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