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ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 33 ।

तेरे बल बानर जिताये रन रावनसों,
तेरे घाले जातुधान भये घर-घरके ।
तेरे बल रामराज किये सब सुरकाज,
सकल समाज साज साजे रघुबरके ।।

तेरो गुनगान सुनि गीरबान पुलकत,
सजल बिलोचन बिरंचि हरि हरके ।
तुलसीके माथेपर हाथ फेरो कीसनाथ,
देखिये न दास दुखी तोसे कनिगरके ।।

भावार्थ - आपके बल ने युद्ध में वानरों को रावण से जिताया और आपके ही नष्ट करने से राक्षस घर-घर के (तीन-तेरह) हो गये। आपके ही बल से राजा रामचन्द्रजी ने देवताओं का सब काम पूरा किया और आपने ही रघुनाथजी के समाज का सम्पूर्ण साज सजाया। आपके गुणों का गान सुनकर देवता रोमांचित होते हैं और ब्रह्मा, विष्णु महेश की आँखों में जल भर आता है। हे वानरोंके स्वामी! तुलसी के माथेपर हाथ फेरिये, आप-जैसे अपनी मर्यादा की लाज रखनेवालों के दास कभी दुखी नहीं देखे गये।। 33 ।।

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