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ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 31 ।

दूत रामरायको, सपूत पूत बायको,
समत्थ हाथ पायको सहाय असहायको ।
बाँकी बिरदावली बिदित बेद गाइयत,
रावन सो भट भयो मुठिकाके घायको ।।

एते बड़े साहेब समर्थको निवाजो आज,
सीदत सुसेवक बचन मन कायको ।
थोरी बाँहपीरकी बड़ी गलानि तुलसीको,
कौन पाप कोप, लोप प्रगट प्रभायको ।।31।।

भावार्थ - आप राजा रामचन्द्र के दूत, पवनदेव के सत्पुत्र, हाथ-पाँवके समर्थ और निराश्रितों के सहायक हैं। आपके सुन्दर यश की कथा विख्यात है, वेद गान करते हैं और रावण-जैसा त्रिलोकविजयी योद्धा आपके घूँसे की चोट से घायल हो गया। इतने बड़े योग्य स्वामी के अनुग्रह करने पर भी आपका श्रेष्ठ सेवक आज तन-मन-वचन से दु:ख पा रहा है। तुलसी को इस थोड़ी-सी बाहु-पीडा की बड़ी ग्लानि है मेरे कौन-से पाप के कारण वा क्रोधसे आपका प्रत्यक्ष प्रभाव लुप्त हो गया है? ।। 31 ।।

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