लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

Like this Hindi book 8 पाठकों को प्रिय

105 पाठक हैं

सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


श्रीगणेशाय नम:

श्रीजानकीवल्लभो विजयते

हनुमानबाहुक

। 1 ।

सिंधु-तरन, सिय-सोच-हरन, रबि-बालबरन-तनु ।
भुज बिसाल, मूरति कराल कालहुको काल जनु ।।

गहन-दहन-निरदहन-लंक  नि:संक, बंक-भुव ।
जातुधान-बलवान-मान-मद-दवन पवनसुव ।।

कह तुलसिदास सेवत सुलभ, सेवक हित संतत निकट।

गुनगनत, नमत, सुमिरत, जपत, समन सकल-संकट-बिकट।।

भावार्थ - जिनके शरीर का रंग उदयकाल के सूर्य के समान है, जो समुद्र लाँघकर श्रीजानकीजी के शोक को हरनेवाले, आजानुबाहु, डरावनी सूरतवाले और मानो काल के भी काल हैं । लंकारूपी गम्भीर वन को, जो जलाने योग्य नहीं था, उसे जिन्होंने निःशंक जलाया और जो टेढ़ी भौंहोंवाले तथा बलवान् राक्षसों के मान और गर्व का नाश करनेवाले हैं, तुलसीदासजी कहते हैं- वे श्रीपवनकुमार सेवा करने पर बड़ी सुगमता से प्राप्त होने वाले, अपने सेवकों की भलाई करने के लिये सदा समीप रहनेवाले तथा गुण गाने, प्रणाम करने एवं स्मरण और नाम जपने से सब भयानक संकटों को नाश करनेवाले हैं।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book