ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक हनुमान बाहुकगोस्वामी तुलसीदास
|
8 पाठकों को प्रिय 105 पाठक हैं |
सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र
। 17 ।
तेरे थपे उथपै न महेस,
थपै थिरको कपि जे घर घाले ।
तेरे निवाजे गरीबनिवाज
बिराजत बैरिनके उर साले ।।
संकट सोच सबै तुलसी
लिये नाम फटै मकरीके-से जाले ।
बूढ़ भये, बलि, मेरिहि बार,
कि हारि परे बहुतै नत पाले ।।
भावार्थ - हे वानरराज! आपके बसाये हुए को शंकरभगवान् भी नहीं उजाड़ सकते और जिस घर को आपने नष्ट कर दिया उसको कौन बसा सकता है? हे गरीबनिवाज! आप जिसपर प्रसन्न हुए वे शत्रुओं के हृदय में पीड़ारूप होकर विराजते हैं। तुलसीदासजी कहते हैं, आपका नाम लेनेसे सम्पूर्ण संकट और सोच मकड़ी के जाले के समान फट जाते हैं। बलिहारी! क्या आप मेरी ही बार बूढ़े हो गये अथवा बहुत-से गरीबों का पालन करते-करते अब थक गये हैं? (इसीसे मेरा संकट दूर करनेमें ढील कर रहे हैं)।। 17 ।।
|