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ई-पुस्तकें >> हनुमान बाहुक

हनुमान बाहुक

गोस्वामी तुलसीदास

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :51
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9697
आईएसबीएन :9781613013496

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सभी कष्टों की पीड़ा से निवारण का मूल मंत्र


। 11 ।

रचिबेको विधि जैसे, पालिबेको हरि, हर
मीच मारिबेको, ज्याइबेको सुधापान भो ।
धरिबेको धरनि, तरनि तम दलिबेको,
सोखिबे कृसानु पोधिबेको हिम-भानु भो ।।

खल-दुख-दोषिबेको, जन-परितोषिबेको,
माँगिबो मलीनताको मोदक सुदान भो ।
आरतकी आरति निवारिबेको तिहूँ पुर,
तुलसीको साहेब हठीलो हनुमान भो ।।

भावार्थ - आप सृष्टिरचना के लिये ब्रह्मा, पालन करने को विष्णु, मारनेको रुद्र और जिलाने के लिये अमृतपान के समान हुए; धारण करने में धरती, अन्धकार को नसाने में सूर्य, सुखाने में अग्नि, पोषण करने में चन्द्रमा और सूर्य हुए; खलों को दुःख देने और दूषित बनानेवाले, सेवकों को संतुष्ट करनेवाले एवं माँगनारूपी मैलेपन का विनाश करनें में मोदकदाता हुए। तीनों लोकों में दुःखियों के दुःख छुड़ाने के लिये तुलसी के स्वामी श्रीहनुमानजी दृढ़प्रतिज्ञ हुए हैं।।11।।

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