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आचार्य श्रीराम शर्मा >> गायत्री और यज्ञोपवीत

गायत्री और यज्ञोपवीत

श्रीराम शर्मा आचार्य

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :67
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9695
आईएसबीएन :9781613013410

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यज्ञोपवीत का भारतीय धर्म में सर्वोपरि स्थान है।


साधकों के लिए उपवीत आवश्यक है


कई व्यक्ति सोचते हैं कि यज्ञोपवीत हमसे सधेगा नहीं, हम उसके नियमों का पालन नहीं कर सकेंगे, इसलिये हमें उसे धारण नहीं करना चाहिए। यह ऐसी ही बात हुई जैसे कोई कहे कि मेरे मन में ईश्वर-भक्ति नहीं, इसलिए मैं पूजा-पाठ न करूँगा पाठ करने का तात्पर्य ही भक्ति उत्पन्न करना है। यह भक्ति पहले से ही होती तो पूजा-पाठ करने की आवश्यकता न रह जाती। यही बात जनेऊ के सम्बन्ध में है, यदि धार्मिक नियमों का साधन अपने आप ही हो जाय तो उसको धारण करने की आवश्यकता ही क्या? चूँकि आमतौर से नियम नहीं सधते, इसीलिये तो यज्ञोपवीत का प्रतिबन्ध लगाकर उन नियमों को साधने का प्रयत्न किया जाता है। जो लोग नियम नहीं साध पाते उन्हीं के लिये सबसे अधिक आवश्यकता जनेऊ धारण करने की है। जो बीमार है उसे ही तो दवा चाहिये, यदि बीमार न होता तो दवा की आवश्यकता ही उसके लिये क्या थी?

नियम क्यों साधने चाहिए? इसके बारे में लोगों की बड़ी विचित्र मान्यतायें हैं। कई आदमी समझते हैं कि भोजन सम्बन्धी नियमों का पालन करना ही जनेऊ का नियम है। बिना स्नान किये, रास्ते का चला हुआ, रात का बासी हुआ, अपनी जाति के अलावा किसी का बनाया हुआ, भोजन न करना ही यज्ञोपवीत की साधना है। यह बड़ी अधूरी और भ्रमपूर्ण है। यज्ञोपवीत का मन्तव्य-जीवन की सर्वांगपूर्ण उन्नति करना है, उन्नतियों में स्वास्थ्य की उन्नति भी एक है और उसके लिये अन्य नियमों का पालन करने के साथ-साथ भोजन सम्बन्धी नियमों की सावधानी रखना उचित है। इस से जनेऊधारी के लिये भोजन सम्बन्धी नियमों का पालन करना ठीक है, परन्तु जिस प्रकार प्रत्येक द्विज सर्वांगीण उन्नति के सभी नियमों का पूर्णतया पालन नहीं कर पाता। फिर भी कन्धे पर जनेऊ धारण किये रहता है; फिर भोजन सम्बन्धी किसी नियम में यदि त्रुटि रह जाय तो यह नहीं समझना चाहिए कि त्रुटि के कारण जनेऊ धारण करने का अधिकार ही छिन जाता है। यदि झूठ बोलने से, दुराचार की दृष्टि रखने से बेईमानी करने से आलस्य प्रमाद या व्यसनों में ग्रस्त रहने से जनेऊ नहीं टूटता तो केवल भोजन सम्बन्धी नियम में कभी-कभी थोड़ा-सा अपवाद आ जाने से नियम टूट जायेगा, यह सोचना किस प्रकार कहा जा सकता है?

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