लोगों की राय

आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

367 पाठक हैं

कालजयी प्रेम कथा

11

दूसरे दिन संध्या के समय चुन्नीलाल ने देवदास के कमरे में आकर देखा कि वे व्यस्त भाव से अपना सब माल-असबाब बांध-छान रहे हैं। विस्मित होकर पूछा- 'क्या नहीं जाओगे?'

देवदास ने किसी ओर न देखकर कहा- 'हां, जाऊंगा।'

'तब यह सब क्या करते हो?'

'जाने की तैयारी कर रहा हूं।'

चुन्नीलाल ने कुछ हंसकर सोचा, अच्छी तैयारी है! कहा - 'क्या तुम सब घर-द्वार वहां पर उठा ले चलोगे?

'तब किसके पास छोड जाऊंगा?'

चुन्नीलाल समझ नहीं सके, कहा 'मैं अपनी चीज-वस्तु किसी पर छोड़ जाता हूं? सभी तो बासे में पड़ी रहती हैं।' देवदास ने सहसा सचेत होकर आंखें ऊपर को उठायीं, लज्जित होकर कहा-'चुन्नी बाबू, आज मैं घर जा रहा हूं।'

'यह क्यों, कब आओगे?'

देवदास ने सिर हिलाकर कहा- 'अब मैं फिर नहीं आऊंगा।' विस्मित होकर चुन्नीलाल उनके मुंह की ओर देखने लगे।

देवदास ने कहा- 'यह रुपये लो, मुझ पर जो कछ उधार हो उसे इससे चुकती कर देना। यदि कुछ बचे तो दास-दासियों में बांट देना। अब मैं फिर कभी कलकत्ता नहीं लौटूंगा।' देवदास मन-ही-मन कहने लगे - कलकत्ता आने से मेरा बड़ा खर्च पड़ा।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book