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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देवदास

देवदास

शरत चन्द्र चट्टोपाध्याय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :218
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9690
आईएसबीएन :9781613014639

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कालजयी प्रेम कथा


देवदास ने भी इसे देखा।

कुछ देर चुप रहने के बाद मां ने फिर कहा-'तुम्हारे बाबूजी से भी मैंने कहा था।'

देवदास ने पूछा-'बाबूजी ने क्या कहा?'

'और क्या कहेंगे? यही कहा कि क्या इतने बड़े वंश का सिर नीचा करेंगे।'

देवदास ने फिर कोई बात नहीं पूछी। इसी दिन दोपहर में मनोरमा और पार्वती की बातचीत हुई। पार्वती की आँखों में जल देखकर मनोरमा की आँखे भी डबडबा आयीं। उसने उन्हें पोछकर पूछा-'तब कौन-सा उपाय है बहिन?'

पार्वती ने आँखें पोछकर कहा-'क्या तुमने अपने वर को पसन्द करके विवाह किया था?' 'मेरी बात दूसरी है। मुझे पसन्द भी नहीं था और नापसन्द भी नहीं है, इसी से मुझे कोई कष्ट भी नहीं है। पर तुम अपने पांव में आप कुठार मारती हो, बहिन!' पार्वती ने जवाब नहीं दिया, वह मन-ही-मन कुछ सोचने लगी।

मनोरमा कुछ सोचकर हंसी। पूछा-'पारो, वर की उम्र क्या है?'

'किसके वर ही?'

'तुम्हारे!'

पार्वती ने हंसकर कहा-'सम्भवत: उन्नीस।'

मनोरमा ने विस्मित होकर कहा-'यह क्या मैंने तो सुना है कि चालीस?'

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