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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> देहाती समाज देहाती समाजशरत चन्द्र चट्टोपाध्याय
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ग्रामीण जीवन पर आधारित उपन्यास
वेणी ने उदास चेहरे पर हँसी लाते हुए कहा-'उसके बाद की मुझे भी याद नहीं कि कौन, कैसे, कब अस्पताल ले गया और वहाँ क्या हुआ? मुझे तो पूरे दस दिन बाद होश आया-यह कहो कि मेरा दूसरा जन्म हुआ है और वह भी माँ के प्रताप से! माँ लाखों में एक है हमारी।'
रमेश शांत बैठा रहा। सुनते-सुनते उसके दोनों हाथ एक में गुँथ कर मजबूती से कस उठे। अंदर ही अंदर घृणा, क्षोभ और व्यथा की प्रचंड ज्वाला धधकने लगी। उसका अंत कहाँ होगा, यह रमेश भी स्वयं न जान सका।
वेणी को वह अच्छी तरह समझ गया था कि वह कोई भी नीच से नीच कार्य नि:संकोच कर सकते हैं, पर उसने यह न सोचा था कि नि:संकोच हो, निर्लज्जता से वे झूठ भी हर दर्जे का बोल सकते हैं। तभी तो उसने उनकी बात को सत्य मान कर, अपने मन को दोषी ठहरा लिया, इसी कारण गुस्से से उसे मूर्च्छा तक आ गई थी। उसके गाँव में लौटने पर, चारों तरफ खुशियाँ मनाई जाने लगीं। हर समय कोई न कोई मिलने आता ही रहता। रमेश को सजा सुनते समय या जेल के अंदर पहुँच कर जो ग्लानि हो रही थी, अब वह न रही। उनके पीछे आस-पास के सभी गाँवों में एक सामाजिक नवजागरण हो उठा था। जब ठण्डे दिमाग से बैठ कर उसने सोचा कि इतना बड़ा परिवर्तन इतने से दिनों में ही कैसे संभव हो गया तब उसकी समझ में आया कि वेणी के विरोधी होने के कारण, जो धारा धीरे-धीरे उनके विरोध का सामना करते हुए बह रही थी, उनकी अनुकूलता से वह दोगुने वेग से बह उठी थी। वेणी को कितना मानते हैं गाँववाले! उलटा करने को कहे तो सब साथ, सीधा करने को कहे तो सब साथ! यह बात रमेश ने आज जानी। रमेश ने अब शांति की साँस ली-वेणी के विरोध से छुट्टी पा कर। सभी उनके दुख के प्रति अफसोस, उनके लिए सद्भाेवना प्रकट कर गए। समस्त गाँव की सद्भाोवना और वेणी का सहयोग पा कर रमेश की छाती फूल उठी। छह माह पहले जिस काम को छोड़ कर अचानक उन्हें इस तरह जेल चले जाना पड़ा था, उसे बढ़ाने का व्रत लेकर, वह फिर पूरे जोश के साथ उसमें जुट गया।
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