जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
''क्यों न उससे मिलकर भी कुछ रुपया ऐंठ लिया जाये और अवसर का अधिक लाभ उठाया जाये।''
''इन्सपैक्टर ठीक ही कहता था, संसार में रुपये से ही सब कुछ होता है। रुपये वाले के दोष, पाप सब क्षमा कर दिये जाते हैं। पापी होने पर भी वह समाज का एक सम्मानित व्यक्ति समझा जाता है। चन्द्रशेखर आजाद की मित्रता से मुझे क्या मिलेगा - राजद्रोह और पुलिस से शत्रुता? जीवित रहना भी दूभर हो जायेगा।''
'नहीं---आये हुए अवसर को हाथ से नहीं जाने देना चाहिए। केवल कुछ घंटों के लिए ही तो कल जी कड़ा कर लेने की बात है, फिर तो जीवन भर मौज ही मौज है। क्योंकि अगर आजाद गिरफ्तार हो गया तो फांसी पर अवश्य लटका दिया जायेगा या फिर वहीं पुलिस की गोली का शिकार हो जायेगा। चाहे वह कितना ही अच्छा निशानेबाज सही फिर भी हजारों पुलिस वालों से बचकर जा ही कैसे सकता है? मेरी योजना कोई ऐसी-वैसी थोडे ही होती है!
''हो सकता है, कुछ दिनों तक कुछ लोग बुरा-भला कहते भी रहें किन्तु धीरे-धीरे कुछ दिनों बाद सब अपने आप ही भूल से जायेंगे। अधिक समय बीत जाने पर कौन किसे बुरा कहता है? सब बातें आई-गई हो जाती हैं। बुराई हो या भलाई, यह तो केवल थोड़े दिनों ही चला करती है।'
देश को गुलाम बनाने वाले केवल कन्नौज के राजा जयचन्द ही नहीं थे। उनके बाद भी मुसलमानी काल से लेकर अब तक सैकड़ों जयचन्द होते रहे हैं। उन्हीं दुष्टात्मा जयचन्दों में से ही एक जयचन्द यह तिवारी भी था। सवेरे के पांच बजते ही वह उठ कर सेठ के घर की ओर चल दिया।
सेठ अभी ठीक तरह से सोकर भी न उठा था। तिवारी के पुकारने पर बाहर आया। उसे देखते ही उसके होश गुम हो गए। किन्तु यह मालूम होने पर कि तिवारी अकेला ही है साथ में आजाद नहीं है, उसे कुछ संतोष हुआ।
तिवारी, सेठ की मनोदशा को बहुत कुछ भाँप गया। उसने समझ लिया कि अवश्य ही दाल में कुछ काला है। उसने सेठ से एकान्त में चलकर कुछ आवश्यक बातें करने के लिए कहा।
वहां से चलकर जब दोनों एक कमरे में बैठ गए तो तिवारी बोला, ''चन्द्रशेखर आजाद को आपकी सारी बातें मालूम हो गई हैं।''
''कौन सी बातें?'' सेठ ने घबराकर पूछा।
''यही कि आपने उनके बारे में पुलिस को सूचना दे दी है।''
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