जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
आनन्द भवन में
सन् 1930 को गांधी जी द्वारा चलाया गया असहयोग आन्दोलन समाप्त हो चुका था। कांग्रेस के नेता जेलों से बाहर आ गये थे। तत्कालीन वायसराय लार्ड इरविन और महात्मा गांधी के बीच समझौता होने की बातें चल रही थीं। दोपहर के तीन बजे पंडित जवाहरलाल नेहरू अपने आनन्द भवन में बैठे हुए देश की विविध समस्याओं पर विचार कर रहे थे। पास ही उनकी धर्मपत्नी माता कमला नेहरू भी बैठी थीं।
उसी समय एक हृष्ट-पुष्ट नौजवान उनके सामने आकर खड़ा हो गया। वह केवल एक तहमद पहने हुए नंगे बदन था। कंधे पर मोटा जनेऊ, गोरा रंग, बडी-बड़ी सामने उमेठी हुई नोकदार मूंछें उसके अपने विशेष व्यक्तित्व का परिचय दे रही थीं।
नेहरू दम्पति बड़े आश्चर्य से उस आगन्तुक की ओर देखते रहे। उसने दोनों को हाथ जोड़कर प्रणाम किया और नेहरू जी को ओर देखकर बोला ''क्या आप मुझे पहचानते हैं?''
''नहीं। नौजवान मैं तुम्हे नहीं पहचान सका।''
''मेरा नाम चन्द्रशेखर आजाद है।''
आजाद का नाम सुनते ही पंडित नेहरू की आंखों में प्रेम झलक आया। उन्होंने बड़े प्रेम से उसका हाथ पकड़कर अपने पास बैठाते हुए कहा, ''भारत् के नौनिहाल, तुम्हारा नाम तो बहुत सुना है लेकिन तुमसे मिलने का कभी अवसर नहीं मिला। तुम्हारे जैसे वीरों को जन्म देकर ही हमारी मातृभूमि वीर प्रसवनी कहलाने का अधिकार रखती है।''
आजाद ने अपने स्वर को नम्र बनाकर कहा, ''मैं कांग्रेस के सभी नेताओं का सम्मान करता हूं। श्री लोकमान्य तिलक, महात्मा गांधी और आपके प्रति मुझे कुछ विशेष श्रद्धा है।''
पं० नेहरू शांतिपूर्वक आजाद की ओर केवल देखते रहे। आजाद ने आगे कहा, ''क्योंकि लोकमान्य तिलक ने सबसे पहले हमें सिखलाया कि स्वतंत्रता हमारा जन्मसिद्ध-अधिकार है। गांधी जी ने जन-जन में स्वराज्य की भावना जागृत कर दी और आपने सवसे पहले पूर्ण स्वराज्य की मांग का नारा लगाया है। पूज्य तिलक अब नहीं रहे। गांधी जी महात्मा हैं। वह तो केवल सत्य और अहिंसा के अतिरिक्त हमें शिक्षा ही क्या देंगे? गांधी जी के सबसे अधिक विश्वासपात्र और देश के सबसे बड़े भावी नेता आप ही हैं। इसलिए मैं आपसे ही एक प्रश्न पूछने आया हूं।''
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