जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
लाहौर जेल
लाहौर सेन्ट्रल जेल में सभी कैदी अपनी बैरकों में पड़े सो रहे थे। सरदार भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव भी अपनी कोठरियों में पड़े थे।
चार का गजर बज उठा। सरदार की आखें खुल गईं। वह पड़े-पड़े ही सोचने लगे, ''हम तीनों को फांसी की सजा मिली है। उसकी अपील हाईकोर्ट में की गई है। अपील का तो सरकार ने केवल ढोंग रचवाया है। हमें फांसी निश्चित होनी ही है। बहुत जल्द ही कोई दिन हम लोगों को एक साथ ही मौत का पैगाम लेकर आने वाला है।''
मौत.. या अमरता?
''आजादी पर मिटने वाले क्या कभी मरा करते हैं? मौत वीरों को नहीं, कायरों को आती है। कायर जीबित रह कर भी मरे हुए ही रहते हैं। वीर मरकर भी अमर होते हैं।''
''यह शरीर नश्वर है, आत्मा अमर है। जिस देश की मिट्टी, पानी और हवा से यह बना है, यदि उसी के लिए मिट जाने का अवसर मिल सके तो उससे बढ़कर सौभाग्य की बात ही क्या हो सकती है!''
''संसार के सारे बन्धन शरीर के लिए ही होते हैं। आत्मा सभी बन्धनों से मुक्त है। ब्रिटिश सरकार समझती है, वह देशभक्तों को फांसी पर चढ़ाकर हमारे देश को गुलामी में जकड़ती रहेगी किन्तु वह नहीं जानती, किसी भी सरकार का वास्तविक शासन मनुष्यों के शरीरों पर नहीं, हृदयों पर हुआ करता है। आज भी हमारे देश में गुलाम तो वे हैं जो मानसिक दासता में जकड़े हुए हैं, जिनकी अन्तर-आत्मा मर चुकी है, जो देश के हित की बात कभी सोच ही नहीं सकते। देश की वास्तविक आत्मा तो अपने देशभक्तों में ही निवास किया करती है। देशभक्त कभी गुलाम नहीं हो सकता।''
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