जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
किन्तु वे नहीं समझ पाये कि काँग्रेस में लोकमान्य तिलक जैसे महापुरुष भी हैं जो अंग्रेजों द्वारा बनाई गई रस्सी को साँप बनाकर ही छोड़ेंगे। अव वही काँग्रेस अंग्रेजों के लिए जंजाल बन गई है। इसलिए यह तो नहीं कहा जा सकता कि वह असहयोग आन्दोलन बिल्कुल निरर्थक है। उससे जनसाधारण में स्वराज्य की भावना और उसे समझने की जागृति तो उत्पन्न होती ही है। फिर भी इसके साथ सशस्त्र क्रान्तिकारी दल की भी अत्यन्त आवश्यकता है। बिना इसके ब्रिटिश सरकार यह कैसे समझ सकेगी कि भारतीयों में कोरी जागृति ही नहीं है बल्कि उनमें अंग्रेजों को उखाड़ फेंकने की शक्ति भी है।
सत्रह वर्ष के खुदीराम बोस ने फाँसी पर चढ़कर यह सिद्ध कर दिया था कि भारत का नौजवान 'खून' आजादी के लिए प्राणोत्सर्ग करना खेल समझता है और एक-एक अंग्रेज को बीन-बीनकर जान से मार सकता है।
सन 1920 में ही यदि हमारी योजना सफल हो जाती तो अंग्रेज का बच्चा भी भारत में न रह पाता। सारे उत्तरी भारत में क्रान्तिकारियों का जाल-सा बिछा हुआ था। लाहौर, बनारस, पटना और कलकत्ता हमारे प्रमुख केन्द्र थे। बंगाल के क्रान्तिकारियों ने स्पष्ट कह दिया था, 'बंगाल में ब्रिटिश सरकार की जितनी सेना और पुलिस है, उसके लिए हम लोग काफी हैं। वह हमारा कुछ नहीं बिगाड़ सकती। किन्तु बिहार की मदद आ जाने पर शायद हम लोग असफल हो जायें।' इसीलिए जगह-जगह रेलवे पुलों को उड़ाने के लिए 'डायनामाइट' लगाने की योजना बना ली गई थी जिससे कि सरकार एक जगह से दूसरी जगह अपनी सैनिक सहायता न पहुंचा सके। बनारस क्रान्तिकारी केन्द्र के अध्यक्ष श्री रासबिहारी बोस स्वयं थे। उन्होंने भी उत्तर प्रदेश में सरकार से मोर्चा लेने की सम्पूर्ण तैयारियां कर रखी थीं।
किन्तु दुःख की बात है, सरकार के खुफिया विभाग के कुछ लोग क्रान्तिकारियों से मिले हुए थे। उन्होंने क्रान्ति के निश्चित समय से चौबीस घंटे पहले सरकार को सारी योजना बतला दी। जगह-जगह छापे मारे गए, क्रान्तिकारी लोग बन्दी बना लिये गये, उनके अस्त्र-शस्त्रों के भंडार भी सरकार के हाथों लग गए। इससे सिद्ध होता है कि ब्रिटिश सरकार भारत में राज्य अपने बलबूते पर नहीं कर रही है। उसने कुछ भारतवासियों को ऐसी मानसिक दासता की बेड़ियां पहना रखी हैं कि वे सरकार की वफादारी के अतिरिक्त अपने देश और समाज की कोई भलाई सोच ही नहीं सकते हैं। उन्हीं भारतीयों के द्वारा भारतीयों पर अत्याचार करा के अंग्रेज सात समुद्र पार से भारत पर निरंकुश शासन कर रहे हैं।
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