जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
एक बार त्यागमूर्ति पण्डित मोतीलाल नेहरू ने चन्द्रशेखर आजाद को अपने यहां आनन्द भवन में बुलवाया। आजाद वहाँ गए। दोनों में वहुत देर तक बातें होती रहीं।
नेहरू जी ने कहा, ''मैं नहीं समझता, इननी बड़ी शक्तिशाली ब्रिटिश सरकार से तुम मुट्ठी भर वीर, शस्त्रों द्वारा कैसे जीत सकोगे?''
''केवल आपका आशीर्वाद चाहिए, धीरे-धीरे सब ठीक हो जायेगा।''
''वह कैसे?''
''पहाड़ जैसे हाथी को मारने के लिए केवल छोटी सी चींटी काफी होती है। दूध से भरे कढ़ाव को नींबू के रस ही एक बूंद फाड सकती है। फिर हमारे साथ तो इतने वड़े देश में बसने वाली जनता की सहानुभूति है। अत्याचारी जितना अत्याचार करता है, विद्रोह की आग उतनी ही अधिक भड़कती है।''
नेहरूजी उनकी बात बड़े ध्यान से सुन रहे थे। उस वीर के एक-एक शब्द से आत्मविश्वास की झलक टपकती थी। आजाद ने आगे कहा, ''इन इक्की-दुक्की हत्याओं और अन्य घटनाओं से इस ब्रिटिश सरकार को केवल यह आगाह करना चाहते हैं कि हम भी कुछ शक्ति रखते हैं। यह अत्याचारी सरकार अब भी समझ जाये, नहीं तो वह दिन दूर नहीं जबकि एक दिन अंग्रेजों को स्वयं ही यहाँ से भागना पड़ेगा।
''किन्तु अफसरों के मारने से क्या लाभ है? एक मरता है तो उसकी जगह पर दूसरा आ जाता है।''
''हम तो केवल उसी को मारते हैं जिसके अत्याचार पराकाष्ठा को पार कर जाते हैं। इससे जनता में उत्साह बढ़ता है और अत्याचारियों को शिक्षा मिलती है।''
नेहरू जी आजाद की बातों से बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने उनकी पीठ ठोककर शाबाशी दी और बड़ी प्रशंसा की।
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