जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
|
5 पाठकों को प्रिय 360 पाठक हैं |
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
साइमन कमीशन
सन 1914 से लेकर 1918 तक के जर्मनी से महायुद्ध में भारतीयों ने ब्रिटिश सरकार की भरपूर सहायता की थी। महात्मा गांधी सरीखे राष्ट्र के बड़े-बड़े नेताओं ने स्वयं लाखों रंगरूट सेना में भर्ती कराये थे। अंग्रेजों ने भी भारतीयों से बड़े-बड़े आश्वासन दिये थे। किन्तु महायुद्ध के समाप्ति पर अंग्रेज अपने वायदों से मुकर गये। इसलिए सन् 1921 में असहयोग आंदोलन आरम्भ किया गया। इस पर सरकार ने घोषणा की, शीघ्र ही इंगलैंड से एक कमीशन भारत को भी भेजा जायेगा, जिसमें कि आधे सदस्य भारतीय होंगे। यह कमीशन तय करेगा कि भारतवासियों को किस तरह का स्वराज्य मिलना चाहिए।
कुछ दिनों बाद कमीशन आया उसमें सात सदस्य थे। वे सभी अंग्रेज थे। भारत का एक भी सदस्य नहीं था। उस कमीशन के अध्यक्ष साइमन थे, इसीलिए इतिहास में यह 'साइमन कमीशन' के नाम से प्रसिद्ध है।
हमारे देश के नेता जानते थे, अंग्रेज कभी भारतीयों के पक्ष में निर्णय नहीं दे सकते। यह कमीशन केवल धोखा देने के लिए दिखावा मात्र है। इसलिए कमीशन के इंगलैण्ड से चलते ही भारतीय नेताओं ने इसका विरोध किया। नगर-नगर में सभायें की गईं काले झण्डे दिखाकर उसका विरोध किया गया।
कई नगरों में घूमने के बाद वह कमीशन पंजाब की राजधानी लाहौर में पहुँचने वाला था। नौकरशाही अंग्रेज सरकार के पिट्ठुओं ने उसके स्वागत के लिए बड़ी-बड़ी तैयारियाँ की थीं। रेलवे स्टेशन सजाया गया था। बड़े-बड़े अफसर कमीशन को लेने स्टेशन पर जा रहे थे। दूसरी ओर हजारों-लाखों भारतीय स्त्री-पुरुष हाथों में काली झण्डियॉ लिये हुए पंजाव केसरी लाला लाजपत राय के पीछे चल रहे थे। 'साइमन कमीशन गो बैक', 'साइमन कमीशन लौट जाओ' के नारों से सारा वायुमण्डल गूंज रहा था।
|