जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
|
5 पाठकों को प्रिय 360 पाठक हैं |
स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
सेठजी ने उसी समय तिजौरी खोली और नोटों की गड्डियाँ साहब को सम्भलवाते हुए कहा, ''हजूर! समय की कोई बात नही है, रुपया तो हम सरकार को देते ही रहते हैं और आगे भी जब हुजूर फरमायेंगे हम देंगे। लेकिन हजूर अपनी बात का खयाल जरूर रखें।''
''ओह जरूर, जरूर! आपको राय बहादुर का खिताब अगले महीने में जरूर मिलेगा।''
क्लर्क ने रुपये बैग में रखे और बैग चपरासी को दे दिया। तीनो चल दिये। सेठजी मुनीमजी के साथ साहब को उनकी कार तक पहुंचाने आये।
सेठजी लौट कर अपने कमरे में मसनद के सहारे आ बैठे। वह अपने नाम के आगे राय बहादुर की कल्पना करते हुए मन ही मन बड़े प्रसन्न हो रहे थे।
मुनीमजी उनके मन की खुशी का अनुमान लगाते हुए बोले, ''अब सेठ छगनलाल को बड़ी जलन होगी। वह तीन पुश्त से कोशिश करते-करते मरे जा रहे हैं, उनके यहां कोई राय साहब भी नहीं हुआ। आप तो राय बहादुर हो जायेंगे।''
''मुनीमजी। यह सब भगवान की कृपा और बड़े-बूढ़ों के आशीर्वाद का फल है। हम किस लायक हैं।''
''पुलिस-पुलिस।'' कहता हुआ चौकीदार दौड़कर भीतर आया। सेठजी घबड़ाकर खडे हो गए। तभी आठ-दस सिपाही और पुलिस इन्सपेक्टर भीतर घुसकर सेठजी के पास आ पहुंचे।
''सेठजी यहाँ कौन आया था?'' पुलिस इन्सपेक्टर ने सेठ जी से प्रश्न किया।
''अभी अभी थोड़ी देर पहले लाट साहब के पी०ए० साहब आये थे। चन्दे का पच्चीस हजार रुपया ले गये हैं।''
''कैसे पी०ए०? कैसा चन्दा? उन साहब का हुलिया क्या था?''
''वह गोरे रंग के लम्बे-लम्वे, पतले थे और टोप लगा रखे थे।''
''उनके साथ कौन था?''
|