जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
जान सभी को प्यारी होती है। आजाद की पिस्तौल देखकर उसकी घिग्गी बँध गई। वह केवल हाथ जोड़कर खड़ा ही रहा, मुंह से कोई शब्द न निकला।
''अब से आगे कभी मेरा पीछा करने की कोशिश न करना, नहीं तो तुम्हें अपनी जान से हाथ धोना पड़ेगा।'' आजाद ने उसे धमकाते हुए कहा और जाने का इशारा किया। वह चुपचाप वहाँ से खिसक गया और फिर कभी आजाद को पकड़ने का प्रयत्न नहीं किया।
एक दिन सवेरे ही सवेरे कानपुर स्टेशन को पुलिस ने चारों ओर से घेर लिया। उन्हें पता चल गया था, आजाद लखनऊ से कानपुर आ रहे हैं। लखनऊ वाली ट्रेन आकर कानपुर स्टेशन पर खडी हो गई। सभी पुलिस वाले सतर्क हो गए, आजाद बड़ी निर्भयतापूर्वक ट्रेन के डिब्बे से उतरे और स्टेशन से बाहर निकलने वाले फाटक पर पहुँचे। जैसे ही वह बाहर जाने लगे, एक पुलिस अफसर उनके सामने आकर खड़ा हो गया। उन्होंने मुस्कराकर पिस्तौल निकालने के लिए अपनी जेब में हाथ डाला। यह देखकर वह अफसर इस तरह काँपने लगा जैसे शेर को पंजा उठाते देखकर, शिकार होने वाले जानवर के प्राण सूख जाते हैं। वह घबराकर एकदम पीछे हटा और वहाँ से चुपचाप ही चलता बना। आजाद बाएं हाथ से अपनी मूंछ मरोड़ते हुए मस्तानी चाल से स्टेशन के बाहर आए। पुलिस वालों से कुछ भी करते-धरते न बना सब खड़े-खड़े देखते रह गए। आजाद टैक्सी में सवार होकर चल दिए।
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