जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
आकाश में स्वच्छन्द विहार करने वाले पक्षी को सोने का पिंजरा कब पसन्द आ सकता है ! चन्द्रशेखर आजाद ने किसी तरह से दो महीने तो यहाँ काट दिये। इसके बाद उन्हें एक-एक मिनट भी यहां रहने में वड़ा कष्ट हो रहा था। एक दिन उन्होंने अपने साथियों को पत्र लिखा- ''महन्त जी खूब फल और दूध उड़ाने लगे हैं। दिन-दिन मोटे होते जा रहे हैं। फिलहाल उनके मरने के कोई आसार नहीं हैं। इसलिए कृपा करके मुझे शीघ्र ही इस बन्धन से मुक्त कराइये।''
पत्र पाते ही मन्मथनाथ और गोविन्द प्रकाश जी महन्त जी के यहाँ गाजीपुर जा पहुंचे । दोनों ही साधु भेष में थे। महन्त जी से भेंट होने और कुशलक्षेम पूछने के बाद उन्होंने मठ देखने के लिए घूमना आरम्भ कर दिया।
यह मठ क्या था, एक छोटा गढ़ था। उसे देखकर मन्मथनाथ जी ने विचारा, यदि यह स्थान अपने दल को मिल जाये तो सारी समस्या ही हल हो जाये। क्योंकि स्थान मी सुरक्षित है और यहाँ धन की भी कोई कमी नहीं है।'
कुछ देर बाद आजाद भी उन्हें वहीं मिल गये। मन्मथनाय और गोबिन्द प्रकाश जी ने आजाद को बहुत समझा-बुझाकर वहीं रहने का अनुरोध किया और स्वयं दोनों वापस चले आये।
उस समय तो आजाद अपने साथियों का कहना मानकर वहाँ रुक गये किन्तु बाद में उन्होंने सोचा - महन्त के मरने की अभी कोई आशा नहीं है। जब तक महन्त नहीं मरता तब तक यहाँ रहना ही व्यर्थ है। तब अनिश्चित काल के लिए, आशा में बँधे रहकर, देश-सेवा से क्यों वंचित रहा जाये!
एक दिन वह चुपचाप मठ से भाग आये। महन्त का धन पाने की क्रान्तिकारियों की आशा पर पानी फिर गया।
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