जीवनी/आत्मकथा >> क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजाद क्रांति का देवता चन्द्रशेखर आजादजगन्नाथ मिश्रा
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स्वतंत्रता संग्राम सेनानी चंद्रशेखर आजाद की सरल जीवनी
कुछ देर में ही दल ने मुखिया के घर पहुँचकर लूट-मार आरम्भ कर दी। शोरगुल सुनकर गाँव के बहुत से लोग जमा हो गये। दल के कुछ लोग तो धन लूटने में लगे, कुछ ने गाँव वालों से मुठ-भेड़ करने के लिए पिस्तौलें निकाल लीं।
दल के नेता श्री रामप्रसाद बिस्मिल की आज्ञा थी, 'किसी स्त्री के हाथ न लगाया जाये - चाहे वह हमारे ऊपर आक्रमण ही क्यों न कर दे।‘ उनका विचार था जिस देशभक्त ने स्त्री जाति का सम्मान करना नहीं सीखा; वह अपने उद्देश्य में कभी सफल नहीं हो सकता।
इन लोगों ने घर के सभी पुरुषों को तो डराकर भगा दिया, स्त्रियों से कुछ कहा तक नहीं। वह उनके पास तक चली आईं तब भी ये लोग चुप रहे। उन्होंने उनकी उस नीति का लाभ उठाया। दो स्त्रियों ने आगे वढ़कर एक क्रान्तिकारी के हाथ से पिस्तौल छीन ली। उन्होंने तब भी कुछ नहीं कहा। अब तो उन्होंने, उन्हें धन लूटने से भी रोका।
घर के बाहर बहुत लोग जमा हो चुके थे। 'बिस्मिल' जी ने परिस्थिति बिगड़ते देखकर भाग चलने का इशारा किया। वे लोग विना कुछ लिए ही किसी तरह वहाँ से बचकर निकल भागे और अपनी पिस्तौल भी वहीं छोड़ आये।
कुछ दिन के बाद आजाद दल के लिए कहीं से धन जमा करने की चिन्ता में घूम रहे थे। उसी समय एक व्यक्ति उधर आ निकला। उससे उनका बहुत पुराना परिचय था। वह इन्हें देख कर बोला, ''कहो चन्द्रशेखर ! किस चिन्ता में हो?''
“भाई, इस युग में धन का अभाव ही सबसे बड़ी चिन्ता है। धन कैसे जमा किया जाये? यही सोच रहा हूं।''
''अरे! तुम्हारे जैसे व्यक्ति के लिए धन की कमी? तुम चाहो तो आज ही लाखों रुपया पा सकते हो।''
''वह कैसे? ''
''पास के ही गाँव में एक बहुत धनी आदमी है। उसके नौकर-चाकरों से मेरा मेल-जोल है। इसलिए घर के भीतर पहुँचने में कोई कठिनाई नहीं होगी। क्यों न आज ही उसके घर डाका डाला जाये?''
आजाद तो ऐसे अवसर की ताक में ही थे। वह तुरन्त सहमत हो गए। उसी दिन रात को दल के व्यक्तियों के साथ जाकर उस घर में डाका डाला गया।
आजाद और उनके साथी धन जमा करने में लगे हुए थे। तभी आजाद ने देखा - उसी घर की एक बहुत सुन्दर नवयुवती को, उनका वही साथी जो उन्हें यहाँ लाया था, छेड़ रहा है। युवती लज्जा और भय से कांप रही है।
आजाद का चरित्र बहुत उज्ज्वल था। वह अखंड ब्रह्मचारी थे। दुष्चरित्रता उन्हें फटी ओंख भी नहीं भाती थी। उसी समय उनका हाथ अपनी पिस्तौल पर गया। धांय, धांय की दो बार आवाज हुई, वह दुष्चरित्र व्यक्ति वहीं ढेर हो गया।
इसके बाद उन्होंने उस नवयुवती से क्षमा माँगी और एक पैसा भी लिए बिना ही सब लोग वापस लौट आये।
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