ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक पौधे चमत्कारिक पौधेउमेश पाण्डे
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प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।
कनेर के औषधिक महत्त्व
इस झाड़ी के अनेक औषधिक महत्त्व हैं- उनमें से कुछ प्रमुख महत्त्वों का वर्णन नीचे किया जा रहा है-
(1) सौन्दर्य वृद्धि हेतु- चेहरे पर उत्पन्न मुख पीड़िकाओं के उपचारार्थ अथवा चेहरे के सौन्दर्य वृद्धि हेतु कनेर के पुष्पों को मसलकर चेहरे पर मला जाता है। कुछ समय पश्चात चेहरे को गुनगुने पानी से धो दिया जाता है। ऐसा करने से चेहरा खिल उठता है। ध्यान रहे पुष्प मुख में न जाने पावे।
(2) शिरोपीड़ा दूर करने हेतु- शिरोपीड़ा के निवारणार्थ कनेर के कुछ पुष्पों को सिर पर मला जाता है। ऐसा करने से शिरोपीड़ा से निवृत्ति होती है।
(3) अल्सर, कैंसर इत्यादि के उपचार में- शरीर की बाहरी त्वचा पर उत्पन्न अल्सर अथवा मैलिग्नैंट कैंसर की गाँठ को कनेर की सहायता से ठीक किया जा सकता है। इस हेतु इसके पुष्पों का अवलेह बनाकर पानी के साथ उसे संबंधित स्थान पर लगाया जाता है।
(4) कुष्ठ रोग के उपचार हेतु- कनेर में कुष्ठरोग के निवारण की क्षमता भी है। इस हेतु कनेर की ताजी जड़ को सरसों के तेल में भली प्रकार से उबालें, फिर उसे ठण्डा करके छान लें। इस तेल को प्रभावित भागों पर लगाने से उनका उपचार होता है। यही तेल एक्जिमा तथा दाद इत्यादि को ठीक करने हेतु भी लिया जा सकता है।
(5) सर्पदंश पर- जिस किसी व्यक्ति को सर्प ने डस लिया हो तब उस स्थान पर कनेर की पत्तियों को पीसकर लगाने से तुरन्त लाभ होता है। शास्त्रों में तो यहाँ तक वर्णन है कि कनेर की पत्तियों से नागराज के विष का असर भी खत्म हो जाता है।
(6) मूषक के काटे जाने पर- सर्प दंश के समान ही मूषक के काटे जाने पर भी कभी-कभी व्यक्ति के प्राणों पर बन आती है। इस हेतु कनेर की छाल को चूर्ण अथवा इसकी लकड़ी का चूर्ण संबंधित स्थान पर लगाया जाता है। लकड़ी का चूर्ण बनाने हेतु इसकी कुछ डण्डियों को सुखा लिया जाता है और फिर उसे पीसा जाता है। इसकी लकड़ी का चूर्ण 1 वर्ष तक प्रभावी बना रहता है।
(7) दाँतों का हिलना रोकने हेतु- दाँतों का हिलना रोकने हेतु श्वेत कनेर की दातून की जाती है। दातून करके कुल्ला गुनगुने पानी से करें। साथ ही इसका रस पेट में न उतारें।
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