ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक पौधे चमत्कारिक पौधेउमेश पाण्डे
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प्रकृति में हमारे आसपास ऐसे अनेक वृक्ष हैं जो हमारे लिए परम उपयोगी हैं। ये वृक्ष हमारे लिए ईश्वर द्वारा प्रदत्त अमूल्य उपहार हैं। इस पुस्तक में कुछ अति सामान्य पौधों के विशिष्ट औषधिक, ज्योतिषीय, ताँत्रिक एवं वास्तु सम्मत सरल प्रयोगों को लिखा जा रहा है।
कचनार
विभिन्न भाषाओं में नाम
हिन्दी - कचनारमलयालम - मण्डेरम
मराठी - कंचन
बंगला - कंचन
गुजराती - कोविदारा, दारुम
पंजाबी - कंचनार
उड़िया - कन्चना
तेलुगु - आडवी मन्डारा
तमिल - तिरुवत्ती
कन्नड़ - डलिये, बिलि मन्दारा
अँग्रेजी – Camel’s foot tree
लेटिन – Bouhinia variegata
कचनार का वृक्ष एक सदाबहार वृक्ष होता है। यह वैश्य जाति का वृक्ष है। मध्यम श्रेणी का यह वृक्ष ऊँचाई में 12 से 15 मीटर तक जाता है। इसका स्तम्भ कड़ा एवं काष्ठीय होता है। तने पर मोटी छाल होती है जो भूरे रंग की होती है। शाखाएँ लम्बी होती हैं जिन पर संयुक्त पत्तियाँ विकसित होती हैं। ये पत्तियाँ बड़ी होती हैं अर्थात् प्रत्येक संयुक्त पत्ती में एक डण्डी होती है। जिसे रेकिस (Rachis) कहा जाता है। इसी रेकिस पर दोनों तरफ एकान्तर क्रम में अनेक पर्णिकाएँ होती हैं। प्रत्येक पर्णिका में एक वृन्त होता है तथा वह आंशिक रूप से 2 भागों में बँटी होती है इस प्रकार वह लगभग हृदयाकार होती हैं। पत्तियों में विशेष प्रकार का जालीय विन्यास होता है। पुष्प हल्के बैंगनी वर्ण के बड़े तथा सुन्दर होते हैं। फल लम्बी फली के रूप में होते हैं जिनमें कतार में बीज पाये जाते हैं। इस वृक्ष की जड़ जमीन में काफी गहराई तक धँसी होती है। यह वृक्ष वनस्पति जगत के लेग्यूमिनोसी (Leguminosae) कुल के उपकुल सेसलपिनॉयडी (Caesalpinoidae) में आता है। इसका लैटिन नाम बॉहिनिया वेरिएगेटा (Bouhinia variegata) है।
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