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आचार्य श्रीराम किंकर जी >> चमत्कार को नमस्कार

चमत्कार को नमस्कार

सुरेश सोमपुरा

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :230
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9685
आईएसबीएन :9781613014318

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यह रोमांच-कथा केवल रोमांच-कथा नहीं। यह तो एक ऐसी कथा है कि जैसी कथा कोई और है ही नहीं। सम्पूर्ण भारतीय साहित्य में नहीं। यह विचित्र कथा केवल विचित्र कथा नहीं। यह सत्य कथा केवल सत्य कथा नहीं।

दो

महायोगिनी की माधुरी

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उस दिन, रेती और चूने का हमारा सप्लायर सामने पड गया। वह सिंधी है और यहीं, कल्याण कैम्प में रहता है। काम-धन्धे की बातें निबटाने के बाद, चाय पीते-पीते, मैंने उससे अचानक पूछा, क्यों, साई? तुम्हारे कल्याण कैम्प में कोई महायोगिनी रहती है?'

''वड़ी, अम्बिकादेवी जी की बात तो आप नहीं कर रहे?''

'हाँ, हाँ, कुछ ऐसा ही नाम है।' मैं उत्सुकता से बोला।

''अरे, वो तो बहुत बड़ी देवी है। बहुत शक्तियाँ हैं उसमें। आप उससे मिलना चाहते हैं क्या?'' उसने पूछा। मैंने उसे उस नौजवान ज्योतिषी वाली बात बताई। फिर महायोगिनी से मिलने की उत्कण्ठा प्रकट की।

''वड़ी उसमें क्या है। मैं ले चलूँगा आपको। मेरी तो उनसे जान-पहचान भी फिर तो उस सिन्धी की जुबान पर लगाम लगाना मुश्किल हो गया। महायोगिनी अम्बिकादेवी के चमत्कारों की इतनी घटनाएँ उसने बयान कर डाली कि मेरी उत्सुकता तूफानी समुद्र की तरह उछलने लगी। गूँगे को बोलता कर दिया, पगले को सयाना बना दिया, प्रेत-बाधा हटा दी, भूत उतार दिया.... न जाने किस-किस असम्भव को महायोगिनी ने सम्भव कर दिखाया था।

''भई, मुझे उनसे जल्दी मिलवाओ।' मैंने कहा।

''कल या परसों तो नहीं. हाँ, नरसों आप शाम के वक्त मेरे दफ्तर में आ जाइए। फौरन महायोगिनी देवी के यहाँ चलेंगे। अरे, इसमें क्या है वड़ी।''

''ठीक है।''

० ०

नरसों की शाम बडी मुश्किल से आई। मैं पैदल ही चलता हुआ कल्याण कैम्प पहुँच गया। सिन्धी ने अपने दफ्तर में मुझे बीसेक मिनट बिठाया, ताकि वह कामधाम निबटा सके। फिर हम महायोगिनी अम्बिकादेवी के निवास स्थान की ओर चल पडे।

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