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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।

इसीलिए सृष्टि का कल्याण करने के लिए शिव की ही सत्ता सर्वव्यापी है।

अहं शिव: शिवश्चायं नं चापि शिवएव हि सर्वं,
शिवमयं ब्रह्म शिवात्परं न किंचन।

अर्थात् मैं, तुम, सभी कुछ शिवमय है शिव से अलग कुछ नहीं है।

शिवोदाता शिवोभोक्ता शिवं सर्वं इदं जगत,
शिवोयजति यज्ञश्चय: शिव: सोऽहं एवं हि।

यानि शिव ही देने वाला है तो शिव ही माँगने वाला है और इस संसार में सभी कुछ शिव ही है। आदि शंकराचार्य जी ने आदिदेव भगवान शंकर की वन्दना की-

त्वतो जगद्भवति देवमक्स्मरारे,
त्वययेव तिष्ठति जगन्मृंविश्वनाथ।
त्वययेवगच्छन्ति लयं जगदेतदीशे,
लिंगात्मक हर चराचर विश्वसपिन।।

हे देवाधिदेव ! हे शंकर! हे कामदर्पदलन ! हे शिव! हे विश्वनाथ! हे ईश्वर! हे हर ! यह लिंग स्वरूप विश्व तुम्हीं से उत्पन्न, तुम्हीं में स्थित और तुम्हीं में फिर लय हो जाता है।

ब्रह्मा, विष्णु, महेश तीनों देव मूलरूप से एक ही शक्ति हैं जो तीन अलग-अलग रूपों में अलग-अलग कार्य करते हैं। स्कन्दपुराण में भी तीनों देवताओं की उत्पत्ति माहेश्वर अंश से बताई गई है।

जीर्ण-शीर्ण वस्तुओं का विनाश आवश्यक है। चूँकि विनाश में ही निर्माण के बीज छिपे हैं, इसीलिए शिव संहारकर्त्ता के रूप में निर्माण, नवजीवन के प्रेरक हैं, इसीलिए शिव को श्मशान का देवता भी कहा जाता है। शवदाह के बाद लोग स्नानकर शिव मन्दिरों में ही पूजन करते हैं। उज्जैन के महाकालेश्वर मन्दिर में तो रोज भस्म आरती होती है, जिसमें ताजी चिता की राख का प्रयोग होता है।

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