ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
शनि के कुप्रभाव से कैसे बचें?
शनिवार को क्या शहर, क्या गाँव, क्या गलियों में सभी जगह आधी बाल्टी तेल में डूबे शनि महाराज और हमारे पाप तथा जेब काटने वालों से तो हम सब परिचित हैं। लोग शनि की नाराजगी से इतना डरते हैं कि कहीं पण्डितजी ने जन्मपत्री देखकर कह दिया कि साढ़े साती शनि है या शनि की दृष्टि ठीक नहीं है, तो लोग क्या-क्या नहीं पापड़ बेलते हैं।
इस डर और आतंक के केन्द्र-बिन्दु-शनि महाराज आखिर हैं क्या? यह तो एक आम परिचय है कि सूर्य के इर्द-गिर्द घूमते हुए नौ ग्रहों में से एक शनि है। एक जमाना था, जब लोगों को केवल छह ग्रहों के बारे में ही पता था। इन छह ग्रहों में से एक सूर्य से सबसे अधिक दूर यानि अन्तिम ग्रह शनि ही था। काफी संयम के बाद पता चला कि शनि के बाद तीन और ग्रह हैं। क्या मालूम अन्तिम होने के कारण ही शनि को इतना महत्व मिला या और कोई वजह थी। भारत में ही नहीं, और देशों में भी शनि को देवता की पदवी दे दी गई थी।
प्राचीन इटली में शनि को फसल की कटाई का देवता माना जाता था और सेटर्न नाम से जाना जाता था। इतावली सभ्यता ने ग्रह के लिए ठीक हंसिये का चिन्ह ही चुना था।
सन् 1600 के आस-पास इटली में गैलिलियो ने शनि को देखा। गैलिलियो ही विश्व में पहले व्यक्ति थे, जिन्होंने दूरबीन से आकाशीय पिण्डों को देखना प्रारम्भ किया। लेकिन गैलिलियो बहुत परेशान हो गए। चूँकि शनि की स्थिति बदलती रहती है और इसके इर्द-गिर्द छल्ले-सी आकृति भी अलग-अलग दिखती है। उनकी छोटी दूरबीन से जो उन्हें दिखा, उसे देखकर उन्होंने यह निष्कर्ष निकाला कि शनि वास्तव में एक ग्रह नहीं, बल्कि तीन ग्रह एक साथ हैं। परेशान होकर गैलिलियो ने यह भी कह दिया कि ये शनि के कान हैं।
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