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चमत्कारिक दिव्य संदेश

उमेश पाण्डे

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :169
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9682
आईएसबीएन :9781613014530

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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।

परमात्मा सबको इस 84 लाख योनियों के बन्धन से मुक्त होने के लिए एक अवसर अवश्य देते हैं और एक अवसर इन चौरासी लाख योनियों में से सबसे श्रेष्ठ एवं उत्तम योनि मनुष्य की योनि मिलती है। मनुष्य योनि सभी योनियों से श्रेष्ठ है। क्योंकि कोई भी जीव मनुष्य की योनि में ही इस सच्चे सुख को प्राप्त कर सकता है। इस योनि में ही सुख प्राप्ति के साधन किए जा सकते हैं, क्योंकि अन्य योनियों में कोई भी जीव न भगवान को भज सकता है न ही अन्य उपाय कर सकता है।

अत: हर व्यक्ति को इन चौरासी लाख योनियों के जेल खाने से छूटने का प्रयास करना चाहिए, क्योंकि मनुष्य की योनि बड़ी दुर्लभता से मिलती है। यह योनि देवताओं की योनि से भी श्रेष्ठ मानी जाती है। देवता भी इसी योनि में सच्चे सुख को पा सकते हैं। इसीलिए वह भी मानव योनि के लिए तरसते हैं। तुलसीदास जी ने एक स्थान पर कहा है कि-

वड़े भाग मानुस तन पावा।
सुर दुर्लभ सब ग्रन्थन गावा।।
साधन धाम मोक्ष कर द्वारा।
पाइ न जो परलोक सँवारा।।
ले परत्र पाबहिं, सिर धुनि-धुनि पछिताहिं।
कालहिं कर्मर्हि ईश्वरहिं, मिथ्या दोष लगाहिं।।

इस प्रकार मनुष्य को सदा सर्वदा अच्छे कार्य करने चाहिये, परोपकार करना चाहिये; उसे सदैव ईश्वर स्मरण करना चाहिये। अपने जीवन-काल पर्यन्त उसे मान-मोह, मद, लोभादि दुर्गुणों से दूर रहते हुए अपने से बड़ों का तथा प्रत्येक वृद्ध व्यक्ति का सम्मान करना चाहिये।

¤ ¤   अशोक बर्मा

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