ई-पुस्तकें >> चमत्कारिक दिव्य संदेश चमत्कारिक दिव्य संदेशउमेश पाण्डे
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सम्पूर्ण विश्व में भारतवर्ष ही एक मात्र ऐसा देश है जो न केवल आधुनिकता और वैज्ञानिकता की दौड़ में शामिल है बल्कि अपने पूर्व संस्कारों को और अपने पूर्वजों की दी हुई शिक्षा को भी साथ लिये हुए है।
आकूत जलराशि के मध्य बहते हुए मैं अपने अन्त का केवल इन्तजार ही कर सकता था, क्योंकि वहाँ पर कोई तैराक, लाईफ सेविंग बोट, रस्सी का जाल इत्यादि मौजूद नहीं था जिससे मुझे कुछ उम्मीद दिखाई पड़ती, पर सहसा मन में एक पंक्ति का स्मरण हुआ कि - गोमाता की सेवा करने वाले मनुष्य की बड़ी से बड़ी विपदा और बुरा समय सरलता से निकल जाता है और मुझे गोमाता के वृहद स्वरूप का ध्यान आया जिसमें प्रत्येक देवी-देवता का वास गोमाता में दिखाया गया है। इस पंक्ति के स्मरण से मुझे अहसास हुआ कि मेरी अकाल मृत्यु सम्भव नहीं है, और मन में साहस का संचय होने लगा। उसी समय भगवन् के आशीर्वाद वाली मुद्रा का फोटो भी आँखों के सामने तैर गया। ऐसा लगा मानो भगवन् आशीर्वाद दे रहे हैं। बहाव में, मैं कई शिलाखण्डों से टकराया जिससे मुझे असहनीय पीड़ा हो रही थी, पर इस समय वह पीड़ा शरीर से गायब हो गई थी और सारी इन्द्रियाँ निष्क्रिय हो गई थीं, अर्थात् न मुझे दिखाई दे रहा था, न किसी चोट का अहसास हो रहा था।
मेरा सम्पूर्ण जीवन कुछ क्षणों में ही मुझे फिल्म की तरह दिखाई दे रहा था। अचानक एक नाव मेरे डूबने का कोलाहल सुनकर मेरे करीब आई और नाविक ने मेरी उँगलियाँ पानी की सतह पर देखकर मुझे निकाल लिया। पानी से बाहर निकलने पर मुझे ज्ञात हुआ कि जिस स्थान पर हम स्नान कर रहे थे, वहाँ से मैं बहते हुए लगभग 500 फीट दूर जा पहुँचा था, और जहाँ पर बहाव अत्यन्त तीव्र था, और मेरा बचना किसी चमत्कार से कम नहीं था तथा इसलिए यह पंक्ति यथार्थ में बदल चुकी थी कि 'गोसेवा करने वाले मनुष्य की बड़ी से बड़ी विपदा और बुरा समय बड़ी सरलता से निकल जाते हैं। मैं और परिवारजन मन ही मन ईश्वर को कोटि-कोटि धन्यवाद देकर सकुशल घर लौटे। और अगले ही दिन मैं श्री श्रीविद्याधाम परिसर में स्थित गोशाला के दर्शन हेतु पहुँचा, जिनकी वजह से मैं बच सका। इस घटना से ईश्वरीय न्याय के प्रति मेरी आस्था और मजबूत हुई।
¤ ¤ दीपक मिश्रा
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