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अकबर - बीरबल

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9680
आईएसबीएन :9781613012178

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अकबर और बीरबल की नोक-झोंक के मनोरंजक किस्से


सभी एक जैसा क्यों नहीं सोचते हैं

दरबार की कार्यवाही चल रही थी। सभी दरबारी एक ऐसे प्रश्न पर विचार कर रहे थे जो राज-काज चलाने की दृष्टि से बेहद अहम न था। सभी एक-एक कर अपनी राय दे रहे थे। बादशाह दरबार में बैठे यह महसूस कर रहे थे कि सबकी राय अलग है। उन्हें आश्चर्य हुआ कि सभी एक जैसे क्यों नहीं सोचते!

तब अकबर ने बीरबल से पूछा, “क्या तुम बता सकते हो कि लोगों की राय आपस में मिलती क्यों नहीं ? सब अलग-अलग क्यों सोचते हैं ?”

“हमेशा ऐसा नहीं होता, बादशाह सलामत !” बीरबल बोला, “कुछ समस्याएं ऐसी होती हैं जिन पर सभी के विचार समान होते हैं।” इसके बाद कुछ और काम निपटा कर दरबार की कार्यवाही समाप्त हो गई। सभी अपने-अपने घरों को लौट चले।

उसी शाम जब बीरबल और अकबर बाग में टहल रहे थे तो बादशाह ने फिर वही राग छेड़ दिया और बीरबल से बहस करने लगे।

तब बीरबल बाग के ही एक कोने की ओर उंगली से संकेत करता हुआ बोला, “वहां उस पेड़ के निकट एक कुआं है। वहां चलिए, मैं कोशिश करता हूं कि आपको समझा सकूं कि जब कोई समस्या जनता से जुड़ी हो तो सभी एक जैसा ही सोचते हैं। मेरे कहने का मतलब यह है कि बहुत सी ऐसी बातें हैं जिनको लेकर लोगों के विचार एक जैसे होते हैं।”

अकबर ने कुछ देर कुंए की ओर घूरा, फिर बोले, “लेकिन मैं कुछ समझा नहीं, तुम्हारे समझाने का ढंग कुछ अजीब सा है।” बादशाह जबकि जानते थे कि बीरबल अपनी बात सिद्ध करने के लिए ऐसे ही प्रयोग करता रहता है।

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