ई-पुस्तकें >> अकबर - बीरबल अकबर - बीरबलगोपाल शुक्ल
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अकबर और बीरबल की नोक-झोंक के मनोरंजक किस्से
“सब समझ जाएंगे हुजूर !” बीरबल बोला, “आप शाही फरमान जारी कराएं कि नगर के हर घर से एक लोटा दूध लाकर बाग में स्थित इस कुएं में डाला जाए। दिन पूर्णमासी का होगा। हमारा नगर बहुत बड़ा है, यदि हर घर से एक लोटा दूध इस कुएं में पड़ेगा तो यह दूध से भर जाएगा।”
बीरबल की यह बात सुन अकबर ठहाका लगाकर हंस पड़े। फिर भी उन्होंने बीरबल के कहेनुसार फरमान जारी कर दिया।
शहर भर में मुनादी करवा दी गई कि आने वाली पूर्णमासी के दिन हर घर से एक लोटा दूध लाकर शाही बाग के कुएं में डाला जाए। जो ऐसा नहीं करेगा उसे सजा मिलेगी।
पूर्णमासी के दिन बाग के बाहर लोगों की कतार लग गई। इस बात का विशेष ध्यान रखा जा रहा था कि हर घर से कोई न कोई वहां जरूर आए। सभी के हाथों में भरे हुए पात्र (बरतन) दिखाई दे रहे थे।
बादशाह अकबर और बीरबल दूर बैठे यह सब देख रहे थे और एक-दूसरे को देख मुस्करा रहे थे। सांझ ढलने से पहले कुएं में दूध डालने का काम पूरा हो गया हर घर से दूध लाकर कुएं में डाला गया था। जब सभी वहां से चले गए तो अकबर व बीरबल ने कुएं के निकट जाकर अंदर झांका। कुआं मुंडेर तक भरा हुआ था। लेकिन यह देख अकबर को बेहद हैरानी हुई कि कुएं में दूध नहीं पानी भरा हुआ था। दूध का तो कहीं नामोनिशान तक न था।
हैरानी भरी निगाहों से अकबर ने बीरबल की ओर देखते हुए पूछा, “ऐसा क्यों हुआ ? शाही फरमान तो कुएं में दूध डालने का जारी हुआ था, यह पानी कहां से आया ? लोगों ने दूध क्यों नहीं डाला ?”
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