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अकबर - बीरबल

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :149
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9680
आईएसबीएन :9781613012178

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अकबर और बीरबल की नोक-झोंक के मनोरंजक किस्से


लेकिन बादशाह ने अपना हाथ बीरबल के कंधे पर रख दिया। वह कारण जानना चाहते थे। बीरबल समझ गया कि बादशाह क्या चाहते हैं। वह बोला, “आपने घोड़ों के ऐसे व्यापारी को बिना सोचे-समझे एक मोटी रकम पेशगी दे दी, जिसका अता-पता भी कोई नहीं जानता। वह आपको धोखा भी दे सकता है। इसलिए मूर्खों की सूची में आपका नाम सबसे ऊपर है। हो सकता है कि अब वह व्यापारी वापस ही न लौटे। वह किसी अन्य देश में जाकर बस जाएगा और आपको ढूढ़े नहीं मिलेगा। किसी से कोई भी सौदा करने के पूर्व उसके बारे में जानकारी तो होनी ही चाहिए। उस व्यापारी ने आपको मात्र दो घोड़े बेचे और आप इतने मोहित हो गए कि मोटी रकम बिना उसको जाने-पहचाने ही दे दी। यही कारण है बस।”

“तुरंत खजाने में जाओ और रकम की अदायगी रुकवा दो।” अकबर ने तुरंत अपने एक सेवक को दौड़ाया।

बीरबल बोला, “अब आपका नाम उस सूची में नहीं रहेगा।”

बादशाह अकबर कुछ क्षण तो बीरबल को घूरते रहे, फिर अपनी दृष्टि दरबारियों पर केन्द्रित कर ठहाका लगाकर हंस पड़े। सभी लोगों ने राहत की सांस ली कि बादशाह को अपनी गलती का अहसास हो गया था। हंसी में दरबारियों ने भी साथ दिया और बीरबल की चतुराई की एक स्वर से प्रशंसा की।

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