ई-पुस्तकें >> अकबर - बीरबल अकबर - बीरबलगोपाल शुक्ल
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अकबर और बीरबल की नोक-झोंक के मनोरंजक किस्से
“यदि तुम्हारी कुछ और जरूरतें हों, तो बेहिचक कह डालो। सब पूरी की जाएंगी।” बादशाह ने हुसिफ से कहा।
तब हुसिफ ने जवाब दिया, “आपने अब तक जितना दिया है वह काफी है शाही जीवन बिताने को, बादशाह सलामत। आपने मुझे इज्जत बख्शी, सर उठाकर चलने की हैसियत दी। मुझसे ज्यादा खुश और कौन होगा। मेरे लिए यह भी फक्र की बात है कि देश का सम्राट मुझे अपना भाई मानता है। और क्या चाहिए हो सकता है मुझे।” कहते हुए उसने सिर खुजाया, होंठों पर अहसान भरी मुस्कान थी। लेकिन लगता था उसे कुछ और भी चाहिए था। वह बोला, “मैं महसूस करता हूं कि बीरबल जैसे बुद्धिमान व योग्य व्यक्ति के साथ रहूं। मेरी ख्वाहिश है कि जैसे बीरबल आपका सलाहकार है, वैसा ही मुझे भी कोई सलाह देने वाला हो।”
बादशाह अकबर ने हुसिफ की यह इच्छा भी पूरी करने का फैसला किया। उन्होंने बीरबल को बुलाकर कहा, “हुसिफ मेरे भाई जैसा है। मैंने उसे जीवन के सभी ऐशो-आराम उपलब्ध करा दिए हैं, लेकिन अब वह तुम्हारे जैसा योग्य सलाहकार चाहता है। तुम अपने जैसा बल्कि यह समझो अपने भाई जैसा कोई व्यक्ति लेकर आओ जो हुसिफ का मन बहला सके। वह बातूनी न हो, पर जो भी बोले, नपा-तुला बोले। उसकी बात का कोई मतलब होना चाहिए। समझ गए न कि मैं क्या चाहता हूं।”
पहले तो बीरबल समझ ही न पाया कि बादशाह ऐसा क्यों चाहते हैं। उसे हुसिफ में ऐसी कोई खूबी दिखाई न देती थी। “जी हुजूर !”
बीरबल बोला, “आप चाहते हैं कि मैं ऐसा आदमी खोजकर लाऊं जो मेरे भाई जैसा हो।”
“ठीक समझे हो।” बादशाह ने कहा।
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