लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> श्रीकृष्ण चालीसा

श्रीकृष्ण चालीसा

गोपाल शुक्ल

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :13
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9655
आईएसबीएन :9781613012192

Like this Hindi book 6 पाठकों को प्रिय

440 पाठक हैं

श्रीकृष्ण चालीसा


जब अर्जुन को मोह ने घेरा,
आया उसको नजर अन्धेरा।
कर्म अकर्म की सुरत विसारी,
आया अन्त वह शरण तिहारी।।15।।

उसको गीता ज्ञान सुनाया,
अपना रूप विराट दिखाया।
विजय पाँडवों की करवाई,
नाश हुए पापी अन्याई।।16।।

जय गीता के गावन वाले,
जय जय विजय दिलावन वाले।
जय अर्जुन के मित्र पियारे,
जय जगबन्धु जगत से न्यारे।।17।।

जय कारण जय कार्य रूपा,
जय जय अलख अभेद अरूपा।
जय जय निराकार साकारा,
जय जय जय जय विश्व अधारा।।18।।

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai