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श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)

डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :212
मुखपृष्ठ : ई-पुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9644
आईएसबीएन :9781613015889

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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में

ब्राह्मण कौन ?

येन सर्वमिदं बुद्धं, प्रकृतिर्विकृतिश्च या
जिसको इस संपूर्ण संसार की नश्वरता का ज्ञान है जो प्रकृति और विकृति से परिचित है। जिसे संपूर्ण प्राणियों की गति का ज्ञान हो, उसे देवता लोग ब्राह्मण जानते हैं।

देवाधीनां जगत्सर्वं मंत्राधीनाश्च देवता
मंत्रा ब्राह्मणाधीनाः तस्माद् विप्रोहि देवता।।
(महाभारत, शांतिपर्व)
देवताओं के अधीन संपूर्ण जगत है और देवता मंत्रों के अधीन हैं। वे मंत्र ब्राह्मणों के अधीन हैं। इसलिए ब्राह्मण भी देवता हैं।

आचाराद्च्युतो विप्रो न वेदफलमश्नुते।
आचारेण तु संयुक्तम संपूर्णफलं भाग्यवेत।।
(मनुस्मृति)
आचारहीन ब्राह्मण को वेद का फल नहीं मिलता। आचार से युक्त ब्राह्मण वेद के संपूर्ण फल को प्राप्त करता है।

यज्ञ: श्रुतमयैशून्यमर्हिसतिथिपूजनम।
दम: सत्यं तपो दानमेतद् ब्राह्मण लक्षण:।।
(महाभारत शांतिपर्व)
वेदों का अध्ययन, चुगली न करना, हिंसा न करना, अतिथि पूजन करना, इंद्रियों का संयम, सच बोलना, तप करना और दान देना यह सब ब्राह्मणों के लक्षण हैं।

विद्या विनय संपन्ने ब्राह्मणे गवि हस्तिनी।
शुनि चैव श्वपाके च पंडिता: समदर्शिनः।।
(श्रीमद्‌भगवतगीता)
विद्या और विनय से युक्त ब्राह्मण में, गाय, हाथी, कुत्ते और चांडाल में जो समान भाव रखता है, वही पंडित है।

परातत सिच्यते राष्ट्रं ब्राह्मणो यत्र जीयते।
(अथर्ववेद)
जहां ब्राह्मण हारते हैं, वह राष्ट्र खोखला हो जाता है।

ब्राह्मण यत्र हिंसन्ति तद् राष्ट्रं दुच्छुना।
(अथर्ववेद)
जहां ब्राह्मण की उपेक्षा होती है, वह राष्ट्र दुख पाता है।

न ब्राह्मणस्य गां जगध्वां राष्ट्रे जागार कश्चन।
(अथर्ववेद)
जहां ब्राह्मणों का तिरस्कार होता है. वहां से सुख-शांति चली जाती है।

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