ई-पुस्तकें >> श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई) श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
नित्य प्रार्थना
हे देवी वरदायिनी, दे दो यह वरदान।
महामंत्र जपता रहूं जब तक घट में प्रान।।
जगदम्बा विनती यही, उर में हो तव ध्यान।
सोते जगते स्वप्न में, सुमिरूं दो वरदान।।
जदपि गूढ़ है तब चरित, ज्यों प्रेरा तस कीन।
सकल दोष निरवारि मां हर अक्षर हो लीन।।
भाषा भाखत तव चरित, ऋषि मुनि के परसाद।
सुमिरन तो तुम्हरो अहे, राखु मातु मरजाद।।
अक्षर अक्षर मां बसो, साबर मंत्र बनाय।
सुख पाये जो जन पढ़े, सप्तसती फल पाय।।
मैं अबोध अति दीन, मूढ़ अधम पामर पतित।
यह दुस्साहस कीन, क्षमहु मातु लखि जगत हित।।
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