ई-पुस्तकें >> श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई) श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
लोचन नील कमल जिमि सोहे।।
नाभि गंभीर सुभग अति त्रिबली।
सोहत रोमावलि कटि पतली।
पीन पयोधर तुंग कठोरा।
सघन समान वृत्त चहु ओरा।।
परमेस्वरि कमलासन पाहीं।
कमल साग धनु सर कर माहीं।।
फूल मूल फल पत्र ताहि बस।
खात पात पावत वांछित रस।।
मिटत मृत्यु भय क्षुधा पिपासा।
साग समूह असन पर वासा।।
मेटति सोक दृष्ट संहारिनि।
सकल पाप संताप निवारिनि।।
दुर्गा कालि चण्डिका गौरी।
सती शताक्षी शाकम्भरी।।
उमा पार्वति एते नामा।
साकम्भरी मातु अभिरामा।।
मातु करत तव ध्यान, अस्तुति पूजन अरु नमन।
मिलत अन्न अरु पान, अक्षय फल सब दुख समन।।१।।
दाढ़ दसन दीसत चमकीला।।
नारि सुभग सुठि दीरघ नयनी।
पीन सुढर कुच जुग सुख दैनी।।
मुण्ड चषक डमरू कर धारे।
चन्द्रहास असि हाथ संभारे।।
कालरात्रि इकवीरा नामा।
पुनि कामदा चरित अभिरामा।।
मातु भ्रामरी कर बहु बरना।
परम तेज दुस्सह उर धरना।।
नाना अंगराग तन सोहें।
चित्र विचित्र विभूषन मोहें।।
चित्रभ्रमरपाणी अस नामा।
महामारि सब कह गुन ग्रामा।
एहिं विधि कहा मातु छह रूपा।
जगत मातु चण्डी सुनु भूपा।
करत कीरतन जे जन प्रतिपल।
कामधेनु सम पावत सब फल।।
अति गोपित यह भेद बतावा।
कहिबे जोग न सदा दुरावा।।
जे जन पढ़त यह चरित नित पावन दुरित छन महं हरैं।
पुनि विप्रबध सम घोर पातक सात जनमनि को जरैं।।
यह ध्यान विधि अति गुप्त जेहिं सत मिलत मनवांछित सदा।
नितजपत सुमिरत लहत सबसुख रहति करुनामयि मुदा।।
जपत सदा धरि ध्यान, ते जन मनवांछित लहत।
करति मातु कल्यान, सकल लोक तेहि आदरत।।२।।
देवीमय सारा जगत, सर्व रूप मयि मातु।।
परमेस्वरि पुनि-पुनि नमन, विश्वरूपमयि पातु।।३।।
इसके बाद प्रारम्भ में बतायी गयी विधि से शापोद्धार करने के बाद अग्रलिखित दोहों को पढ़कर देवी से अपने अपराधों के लिए क्षमा प्रार्थना करें।
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