ई-पुस्तकें >> श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई) श्री दुर्गा सप्तशती (दोहा-चौपाई)डॉ. लक्ष्मीकान्त पाण्डेय
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श्री दुर्गा सप्तशती काव्य रूप में
व्याधि हरति माता जब तुष्टा।
मनवांछित दायिनि जब रुष्टा।।
सरन गहे सब विपति नसाई।
सरनागत सरनद होइ जाई।।
एक मातु जग जननि भवानी।
नाना रूप धरति कल्यानी।।
जब जब होहिं धरम कर नासा।
होत जगत निसिचर गन वासा।।
तब-तब मातु लेति अवतारा।
करति धर्म हित असुर संहारा।।
आगम निगम ज्ञान विज्ञाना।
तब महिमा वरनत विधि नाना।।
सब जग तव बस सुनहु सुजाना।
महामोह तम कूप समाना।।
मनवांछित दायिनि जब रुष्टा।।
सरन गहे सब विपति नसाई।
सरनागत सरनद होइ जाई।।
एक मातु जग जननि भवानी।
नाना रूप धरति कल्यानी।।
जब जब होहिं धरम कर नासा।
होत जगत निसिचर गन वासा।।
तब-तब मातु लेति अवतारा।
करति धर्म हित असुर संहारा।।
आगम निगम ज्ञान विज्ञाना।
तब महिमा वरनत विधि नाना।।
सब जग तव बस सुनहु सुजाना।
महामोह तम कूप समाना।।
घोर निसाचर दस्यु बल, विषधर रिपुदल मांहिं।
दावानल वा उदधि जल, सकल विश्व में पाहि।।४।।
विस्वेस्वरि तुम सब जग पालति।
विश्वात्मा सारा जग धारति।।
भूतनाथ पूजहिं चित लाए।
एहिं कारन विश्वेश कहाये।।
जे जन सरन गहत तव माता।
बनत तुरत जग आश्रय दाता।।
जेहिं विधि सकल निसाचर मारी।
माते रक्षा कीन्ह हमारी।।
रक्षहु सदा मुदित मन माता।
नासहु सकल सत्रु उतपाता।।
बार-बार विनवौं महतारी।
देवि दुरित अघ देहु निवारी।।
पाप ताप सब हरु जगजननी।
रोग सोक संकट की दमनी।।
विश्वात्मा सारा जग धारति।।
भूतनाथ पूजहिं चित लाए।
एहिं कारन विश्वेश कहाये।।
जे जन सरन गहत तव माता।
बनत तुरत जग आश्रय दाता।।
जेहिं विधि सकल निसाचर मारी।
माते रक्षा कीन्ह हमारी।।
रक्षहु सदा मुदित मन माता।
नासहु सकल सत्रु उतपाता।।
बार-बार विनवौं महतारी।
देवि दुरित अघ देहु निवारी।।
पाप ताप सब हरु जगजननी।
रोग सोक संकट की दमनी।।
त्राहि-त्राहि आरत हरनि, चरन परत तव दास।
परमेस्वरि मन मुदित हो, पुरवहु जन की आस।।५क।।
जयति-जयति जगदम्बिका, जगजननी जन जानि।
सुखदा बरदा अभयदा, पाहि-पाहि कल्यानि।।५ख।।
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