ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
मैं आधी
जिन्दगी कुछ नहीं
तेरे बिन ऐ मेरे साथी।
तू है तो सबकुछ है
तू नहीं है तो मैं
रह जाती हूँ आधी।
तूने ही दिल के
कोरे पन्नों पर
लिखा इतिहास
मोहब्बत का
जो पहले खाली था
भर लिया ऐहसास
मोहब्बत का।
तुम ही जीवन गीत हो मेरा
तुम ही हो रैना बाती।
जिन्दगी कुछ नहीं
तेरे बिन ऐ मेरे साथी।
मासूम कली को तुमने
जग में खिलना सिखा दिया
रोती थी मैं हमेशा
हंसना मुझको सिखा दिया
तेरे प्यारे ऐहसास ने
मुझको ये कहना सिखा दिया
तुम हो मेरे जीवन साथी।
जिन्दगी कुछ नहीं
तेरे बिन ऐ मेरे साथी।
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