लोगों की राय

ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह)

यादें (काव्य-संग्रह)

नवलपाल प्रभाकर

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :136
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9607
आईएसबीएन :9781613015933

Like this Hindi book 7 पाठकों को प्रिय

31 पाठक हैं

बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।


नीरस जिन्दगी


जिन्दगी नीरस हो चली है
आशाएं धूमिल होने लगी हैं।
मगर फिर भी जाने क्यों?
डोर जीवन की बंधी है।

साहित्य की क्या खोज करूँ
खुद जीवन मेरा खोया है
क्या मैं कोई कविता लिखूँ
खुद अन्तर्मन मेरा रोया है

सोचता हूँ तभी आज मैं
क्यों अश्रुधारा बह चली है।
मगर फिर भी जाने क्यों?
डोर जीवन की बंधी है।

आँखों में अश्रु हाथ में कलम
लिखना क्या है मुझको ये
पता भी नहीं है सनम
तभी तो बार-बार जहन में

उठता है सवाल जिन्दगी का
यादें पुरानी मिट चली हैं।
मगर फिर भी जाने क्यों?
डोर जीवन की बंधी है।

0 0 0

...Prev | Next...

<< पिछला पृष्ठ प्रथम पृष्ठ अगला पृष्ठ >>

अन्य पुस्तकें

लोगों की राय

No reviews for this book

A PHP Error was encountered

Severity: Notice

Message: Undefined index: mxx

Filename: partials/footer.php

Line Number: 7

hellothai