ई-पुस्तकें >> यादें (काव्य-संग्रह) यादें (काव्य-संग्रह)नवलपाल प्रभाकर
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बचपन की यादें आती हैं चली जाती हैं पर इस कोरे दिल पर अमिट छाप छोड़ जाती हैं।
याद आते हो
फूलों के बागों में
महकते ख्वाबों में
सुन्दर तालाबों में
मुझे तुम याद आते हों।
होता हूँ जब अकेला
होता है चारों तरफ
दुनिया का मैला
मगर न जाने क्यों?
मुझे तुम याद आते हों।
दूर सुदूर आकाश में
दूर किसी क्षितिज पे
मिलता है गगन धरती से
देखूं वहां दिखाई देते हो।
मुझे तुम याद आते हों।
तारों भरी रात में
छत पर लेटे हुए
ख्वाबों में तुम्हारे खोकर
बुलाता हूँ चले आओ।
मुझे तुम याद आते हों।
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