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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका

एकाग्रता की शक्ति

मनुष्य और पशु में मुख्य अन्तर उनके मनों की एकाग्रता की शक्ति में है। किसी भी प्रकार के कार्य में सारी सफलता इसी एकाग्रता का परिणाम है। प्रत्येक व्यक्ति एकाग्रता के बारे में कुछ-न-कुछ जानता है। हम इसके परिणाम नित्य देखते हैं। कला, संगीत आदि में उच्च उपलब्धियाँ मन की एकाग्रता के परिणाम हैं। पशु में मन की एकाग्रता की शक्ति बहुत कम होती है। जो लोग पशुओं को कुछ सिखाते हैं, उन्हें पता है कि पशु को जो बात सिखायी जाती है, उसे वह लगातार भूलता जाता है। वह एक बार में किसी एक वस्तु पर देर तक चित्त को एकाग्र नहीं रख सकता। मनुष्य और पशु में यही अन्तर है - मनुष्य में चित्त की एकाग्रता की शक्ति अपेक्षाकृत अधिक है। एकाग्रता की शक्ति में अन्तर के कारण ही एक मनुष्य दूसरे से भिन्न होता है। छोटे-से-छोटे आदमी की तुलना ऊँचे-से-ऊँचे आदमी से करो। अन्तर मन की एकाग्रता की मात्रा में होता है। बस, यही अन्तर है। प्रत्येक व्यक्ति का मन कभी-न-कभी एकाग्र हो जाता है। जो चीजें हमें प्रिय होती हैं, उन पर हम मन लगाते हैं और जिन चीजों पर हम मन लगाते हैं, वे हमें प्रिय होती हैं। कौन ऐसी माता होगी, जो अपने कुरूप-से-कुरूप बच्चे के मुख से प्रेम न करती हो? उसके लिये वह मुखड़ा दुनिया मे सुन्दरतम है। वह उससे प्रेम करती है, क्योंकि उस पर अपने मन को एकाग्र करती है और यदि सब लोग उसी चेहरे पर अपने मन को एकाग्र करें, तो सब उससे प्यार करने लगेंगे। सभी को वह चेहरा सुन्दरतम प्रतीत होने लगेगा। हम जिन्हें प्यार करते हैं, उन्हीं चीजों पर अपना मन एकाग्र करते हैं।

ऐसी एकाग्रता में सबसे बड़ी अड़चन यह है कि हम अपने मन को वश में नहीं करते, उल्टे उसी के वश में हम रहते हैं। मानो हमसे बाहर की कोई वस्तु मन को अपनी ओर खीच लेती है और जब तक चाहे पकड़े रहती है। सुरीली तान सुनने या सुन्दर चित्र देखने पर हमारा मन दृढ़तापूर्वक उसकी पकड में आ जाता है। हम वहाँ से उसे हटा नहीं सकते।

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