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व्यक्तित्व का विकास

स्वामी विवेकानन्द

प्रकाशक : भारतीय साहित्य संग्रह प्रकाशित वर्ष : 2016
पृष्ठ :134
मुखपृष्ठ : ईपुस्तक
पुस्तक क्रमांक : 9606
आईएसबीएन :9781613012628

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मनुष्य के सर्वांगीण व्यक्तित्व विकास हेतु मार्ग निर्देशिका

व्यक्तित्व का विकास

व्यक्तित्व क्या है?

अंग्रेजी के कैम्ब्रिज अन्तर्राष्ट्रीय शब्दकोश के अनुसार 'आप जिस प्रकार के व्यक्ति हैं, वही आपका व्यक्तित्व है और वह आपके आचरण, संवेदनशीलता तथा विचारों से व्यक्त होता है।'

लांगमैन के शब्दकोश के अनुसार 'किसी व्यक्ति का पूरा स्वभाव तथा चरित्र' ही व्यक्तित्व कहलाता है।

कोई व्यक्ति कैसा आचरण करता है, महसूस करता है और सोचता है, किसी बिशेष परिस्थिति में वह कैसा व्यवहार करता है - यह काफी कुछ उसकी मानसिक संरचना पर निर्भर करता है। किसी व्यक्ति की केवल बाह्य आकृति या उसकी बातें या चाल-ढाल उसके व्यक्तित्व के केवल छोर भर हैं। ये उसके सच्चे व्यक्तित्व को प्रकट नहीं करते। व्यक्तित्व का विकास वस्तुतः व्यक्ति के गहन स्तरों से सम्बन्धित है। अतः मन तथा उसकी क्रियाविधि के बारे में स्पष्ट समझ से ही हमारे व्यक्तित्व का अध्ययन प्रारम्भ होना चाहिए।

अंधे मन को समझने की आवश्यकता
हम बहुत-सी बातें करने के इच्छुक हैं - अच्छी आदतें डालने और बुरी आदतें छोड़ने, एकाग्रता के साथ पढ़ने और मन लगाकर कुछ करने का हम संकल्प लेते हैं। परन्तु बहुधा हमारा मन विद्रोह कर बैठता है और हमें इन सकल्पों को रूपायित करने के हमारे प्रयास से पीछे हटने को मजबूर कर देता है। हमारे सामने किताब खुली पड़ी है और हमारी आँखें खुली हैं परन्तु मन कुछ पुरानी बातों को सोचता हुआ या भविष्य के लिए ख्याली पुलाव पकाता हुआ इधर-उधर घूमने लगता है। जब हम थोड़ी देर के लिए प्रार्थना जप या ध्यान करने बैठते हैं, तब भी ऐसा ही होता है। स्वामी विवेकानन्द कहते हैं, ''स्वतन्त्र ! हम एक क्षण तो स्वयं अपने मन पर शासन नहीं कर सकते, यही नहीं किसी विषय पर उसे स्थिर नहीं कर सकते और अन्य सबसे हटाकर किसी एक बिन्दु पर उसे केन्द्रित नहीं कर सकते फिर भी हम अपने को स्वतन्त्र कहते हैं। जरा इस पर गौर तो करो।''

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