ई-पुस्तकें >> उजला सवेरा उजला सवेरानवलपाल प्रभाकर
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आज की पीढ़ी को प्रेरणा देने वाली कविताएँ
सहारा
आज का मानव
कितना बेबस हो चुका है
कदम-दो-कदम चलने में भी।
उसे किसी......
सहारे की जरूरत है,
सहारा किसी
मानव का नहीं
और न किसी जीव का
सहारा चाहिए तो बस
मानव द्वारा निर्मित
किसी मशीन का ।
कदम जमीन पर रखना
मानव को गंवारा नहीं
हम वहीं मानव हैं
जो कभी
रहते थे जीवों पर निर्भर।
मानता हूं
पहले भी कभी
हमारे पुरखों ने,
कहने को हम उनके
वंशज हैं,
कभी जमीं पर
पैर उन्होंने रखे नहीं,
घूमते थे पेड़ों पर
सोते थे पेड़ों पर
रहते थे पेड़ों पर,
पर उन्हें
इस भूमि से
बे-इंतहा प्रेम था
धरती पर पैर
रखने से पहले
कई बार इसे चूमते थे।
पर आज का इंसान
इसके हृदय को
रौंदता हुआ
अपने स्वार्थ को पूरा कर
आगे बढ़ जाता है।
धरती का हृदय
करूणा से ओत-प्रोत
पानी-पानी हो जाता है।
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